उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर विश्व भर में प्रसिद्ध है। यहां हर साल आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को रथ यात्रा निकाली जाती है। इस दौरान भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र तीन अलग-अलग रथों पर सवार होकर गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं, जो कि उनकी मौसी का घर माना जाता है। समुद्र किनारे बसे इस शहर में खास आयोजन के दौरान श्रद्धालुओं के लिए इतनी अधिक भीड़ रहती है कि जगह-जगह प्रशासन को तैनात रहना पड़ता है। रथ यात्रा के अलावा सालों भर पर्यटकों का आना-जाना यहां पर लगा रहता है, जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलती है।
रथ यात्रा में उपयोग की गई रथों को तैयार करने के लिए करीब 11 महीने का समय लग जाता है। इस रथ यात्रा में शामिल होने के लिए देश ही नहीं बल्कि विश्व भर के लोग पहुंचते हैं।

27 जून को निकाली जाएगी रथ यात्रा
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस साल 27 जून को रथ यात्रा निकाली जाएगी, जिसकी तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी हैं। पिछले कई आर्टिकल में हम आपको मंदिरों से जुड़े कई सारे रहस्य बता चुके हैं। आज एक बार फिर हम आपको उस रहस्य से रूबरू करवाने जा रहे हैं जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे।
15 दिन के लिए बीमार
हर साल भगवान जगन्नाथ 15 दिन के लिए बीमार होते हैं। इस साल भी वर्तमान में वह बीमार चल रहे हैं। 15 दिनों तक आराम करने के बाद वह अपने भक्तों के बीच रथ यात्रा पर सवार होकर निकलते हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। भगवान की तबीयत खराब होने के कारण पुरी मंदिर को भक्तों के लिए बंद कर दिया गया है। परंपरा के अनुसार केवल पुजारी और वैद्य ही इलाज के लिए सुबह-शाम भगवान के पास जाते हैं।
सदियों से निभाई जा रही परंपरा
दरअसल, यह परंपरा सदियों से निभाई जा रही है। जब हर साल ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा को पुरी के श्री मंदिर में 108 कलश से स्नान कराया जाता है, जिसे स्थानीय लोग स्नान पूर्णिमा के नाम से भी जानते हैं। इसके बाद भगवान 15 दिनों के लिए अनवर्सर यानी बीमार हो जाते हैं। जिसके बाद वह 14 दिनों तक आराम करते हैं और इस दौरान उनका इलाज भी चलता है।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, पुरी में माधव दास नामक एक भक्त रहता था, जो भगवान जगन्नाथ की रोज पूजा करता था। एक दिन उसे गंभीर बीमारी हो गई और वह इतना कमजोर हो गया कि उसे चलने में भी दिक्कत होने लगी। इसके बावजूद उसने कभी किसी से मदद नहीं ली और अपने ही सभी कार्य करता रहा। जब वह एकदम लाचार हो गया, तब स्वयं भगवान जगन्नाथ एक सेवक बनकर उसके घर आए और माधव दास की सेवा करने लगे।
हालांकि, माधव दास ने भगवान को पहचान लिया और उनसे पूछा कि “हे प्रभु, आप तो त्रिलोक के स्वामी हैं, तो फिर मेरी सेवा क्यों कर रहे हैं? आप चाहे तो मेरा रोग तुरंत खत्म कर सकते हैं।” जिस पर भगवान ने अपने भक्त को जवाब दिया कि मैं भक्तों की पीड़ा को देख नहीं सकता, इसलिए मैं खुद सेवा करने आ गया। लेकिन हर व्यक्ति को अपने कर्मों का लिखा भोगना ही पड़ता है। तुम्हारे नसीब में जो 15 दिन का रोग बचा है, वह अब मैं स्वयं सहन करूंगा। इसी घटना के बाद भगवान जगन्नाथ हर साल स्नान पूर्णिमा के बाद बीमार हो जाते हैं और अनवसर काल में आराम करते हैं।
(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।)