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Fri, Dec 19, 2025

सावन के महीने में जाएं पश्चिम बंगाल में स्थित सिद्धेश्वर मंदिर, 1200 साल पुराना है इतिहास

Written by:Sanjucta Pandit
Published:
सावन के महीने में यदि आप किसी ऐसे मंदिर की तलाश में हैं, जहां आपको मानसिक शांति मिले, तो आपको सिद्धेश्वर मंदिर जाना चाहिए। यहां जाकर आपको बहुत अच्छा लगेगा।
सावन के महीने में जाएं पश्चिम बंगाल में स्थित सिद्धेश्वर मंदिर, 1200 साल पुराना है इतिहास

सावन का महीना कुछ ही दिनों में खत्म होने वाला है, लेकिन अभी भी भक्तों के बीच उत्साह कम नहीं हुआ है। रोज सुबह शिवालयों में बहुत अधिक भीड़ दिखती है। सुबह और शाम पुजारी द्वारा मंदिरों में पूजा अर्चना कर उनकी आरती उतारी जाती है। श्रद्धालु कंधे पर जल रखकर कावड़ यात्रा में शामिल होते हुए शिवालयों पर जल अर्पित करते हैं और अपने परिवार की सुख शांति की कामना करते हैं। इस खास महीने में लोग डीजे की धुन पर भगवान शिव के गानों पर थिरकते हुए भी नजर आते हैं। पूरा शहर भक्ति में डूबा हुआ नजर आता है। यह मौसम हरियाली का प्रतीक है। मानसून के कारण पूरा जग हरा भरा नजर आता है। मौसम में नमी और झमाझम बारिश के बीच भगवान शिव की आराधना करना अलग ही अनुभव प्रदान करता है।

इस खास महीने में भक्ति उन मंदिरों की तलाश में रहते हैं, जो काफी साल पुराने हो और कई सारे रहस्याओं से जुड़े हुए हैं। अमूमन हर शिव मंदिर का अपना अलग महत्व है, और इन सभी की अपनी अलग-अलग खासियत भी है।

इस मंदिर को करें एक्सप्लोर

आज हम आपको एक ऐसी ही मंदिर से रूबरू करवाने जा रहे हैं, जिसकी बनावट काफी अद्भुत है। छोटे से शहर में स्थित इस मंदिर में सावन के महीने में खासकर श्रद्धालुओं की काफी ज्यादा भीड़ देखने को मिलती है। यहां जाकर आपको मानसिक शांति मिलेगी। शिवरात्रि के मौके पर भी भक्तगण यहां भारी संख्या में उपस्थित होते हैं। पुजारी भी सुबह और शाम नियमित तौर पर भगवान की पूजा-अर्चना करते हैं। मंदिर का देखरेख भी उन्हीं के द्वारा किया जाता है। मंदिर की रोज सुबह साफ सफाई होती है। फिलहाल, मंदिर को रंग बिरंगी लाइट और ताजे फूलों से प्रतिदिन सजाया जाता है।

सिद्धेश्वर मंदिर

दरअसल, हम बात कर रहे हैं सिद्धेश्वर मंदिर की, जो कि पश्चिम बंगाल के बराकर में स्थित है। यहां आपको मंदिर प्रांगण में चार मंदिरों का समूह मिलेगा, जिसमें अलग-अलग देवी देवता स्थापित हैं। इन सभी का अलग-अलग महत्व है। इतिहासकारों की माने तो इस मंदिर का निर्माण आठवीं सदी में किया गया था। मंदिरों को रेखा देव शैली में बनाया गया है। इन्हें देखकर आपको उड़ीसा के मंदिरों की याद आएगी, क्योंकि बनावट हूबहू वहां के मंदिरों से मेल खाती है।

इतिहास

मंदिर परिसर में अंदर जाते ही आपको सबसे पहले भगवान श्री गणेश और माता मर्दिनी का सुंदर मंदिर मिलेगा। इसके बाद आपको भगवान शिव और माता पार्वती का भी मंदिर देखने को मिलेगा। इन चारों की यहां पर सुबह और शाम विधि विधान पूर्वक पूजा अर्चना की जाती है। मंदिर का इतिहास 1200 साल पुराना बताया जाता है। समय तो बदलता चला आ रहा है, लेकिन इन मंदिरों में किसी भी तरह का कोई बदलाव देखने को नहीं मिला है। इनकी बनावट भक्तों को बहुत ही आकर्षित करती है।

स्थानीय मान्यता

स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यहां पूजा अर्चना करने पर मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। कुछ स्थानीय लोगों का यह भी मानना है कि मंदिर का निर्माण एक चट्टान को काटकर किया गया था। इस मंदिर के प्रति लोगों की बहुत ही अधिक आस्था है, जिस कारण दूर-दूर से हजारों लोग यहां पूजा करने के लिए आते हैं। यदि आप भी कोई ऐसी ही मंदिर की तलाश में हैं, तो आपको यहां जरूर जाना चाहिए। यहां जाकर आपको शांति मिलेगी, साथ ही सुकून भरा माहौल प्राप्त होगा। आप दुनिया की सारी चिताओं को भूल जाएंगे। आप यहां ट्रेन और बस दोनों के माध्यम से जा सकते हैं। आप चाहे तो अपने निजी वाहन से भी यहां पहुंच सकते हैं।

(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है।)