Fri, Dec 26, 2025

आज है निर्जला एकादशी 2025, क्यों है सबसे कठिन? जानें पूजा विधि, महत्व और विष्णु भगवान का प्रिय भोग

Written by:Bhawna Choubey
Published:
Nirjala Ekadashi 2025: निर्जला एकादशी व्रत को साल की सबसे कठोर और फलदायक एकादशी माना जाता है। इसमें जल तक नहीं पिया जाता। आज के दिन भगवान विष्णु की पूजा का खास महत्व है। जानिए इस व्रत की सही विधि, क्या चढ़ाएं भोग में, और किन बातों का रखें खास ध्यान।
आज है निर्जला एकादशी 2025, क्यों है सबसे कठिन? जानें पूजा विधि, महत्व और विष्णु भगवान का प्रिय भोग

क्या आप जानते हैं कि निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi 2025) ही एकमात्र ऐसा व्रत है, जिसे रखने से सालभर की सभी 24 एकादशियों का पुण्य एक साथ मिल जाता है? ये व्रत खास उन लोगों के लिए आदर्श माना गया है जो हर एकादशी नहीं रख पाते लेकिन पुण्य का लाभ लेना चाहते हैं। यही वजह है कि इसे ‘भीम एकादशी’ भी कहा जाता है।

इस दिन न सिर्फ अन्न, फल, बल्कि जल तक त्याग दिया जाता है। इसलिए इसे सबसे कठिन और तपस्वी व्रतों में गिना जाता है। निर्जला एकादशी शरीर, मन और आत्मा, तीनों की परीक्षा है। धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

भगवान विष्णु की पूजा विधि और महत्व

निर्जला एकादशी 2025 में 6 जून, शुक्रवार को मनाई जा रही है। ये व्रत विशेष रूप से पांडव भीम द्वारा शुरू किया गया था, जो खाने-पीने के शौकीन थे और बाकी एकादशियों का पालन नहीं कर पाते थे। इसलिए उन्होंने सिर्फ निर्जला एकादशी रखी, ताकि सभी एकादशियों का पुण्य मिल सके।

इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान करके साफ वस्त्र पहनें। फिर तुलसी के पत्तों के साथ भगवान विष्णु की मूर्ति या फोटो पर जल चढ़ाएं। पीला फूल, चंदन, पंचामृत, और नारियल चढ़ाएं। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें और दिनभर उपवास रखें। रात में जागरण और अगले दिन पारण करके व्रत पूर्ण करें। इस व्रत का महत्व इतना है कि इससे व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति मानी जाती है। इसे करने से पाप नाश होते हैं और जीवन में सुख-शांति आती है।

क्या है विष्णु भगवान का प्रिय भोग और व्रत से जुड़े नियम

भगवान विष्णु को पीले रंग की चीजें अत्यंत प्रिय हैं। आप उन्हें भोग में पीली मिठाइयाँ जैसे बेसन के लड्डू, मालपुआ, या केले चढ़ा सकते हैं। इसके अलावा पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर) का भोग भी उत्तम माना जाता है।

इस दिन व्रत रखने वाले जल तक ग्रहण नहीं करते, इसलिए इसे ‘निर्जला’ कहा गया है। केवल बहुत आवश्यक होने पर तुलसी डली वाला जल लेने की अनुमति दी जाती है। ध्यान रहे, व्रत के दौरान झूठ बोलना, गुस्सा करना, या बुरे विचार लाना वर्जित होता है। व्रती को संयम और शुद्ध मन से दिनभर भक्ति करनी चाहिए।

निर्जला एकादशी और सामाजिक आस्था का जुड़ाव

भारत में कई स्थानों पर इस दिन भव्य भजन-कीर्तन और जागरण का आयोजन होता है। मंदिरों में विष्णु सहस्रनाम का सामूहिक पाठ होता है। गरीबों को जल पिलाना और फल बांटना बेहद पुण्यकारी माना जाता है। कई जगहों पर लोग प्याऊ लगाते हैं, जिससे राहगीरों को राहत मिलती है।

विशेष रूप से उत्तर भारत में यह व्रत बड़ी श्रद्धा से किया जाता है। सोशल मीडिया पर भी आजकल लोग अपने व्रत और पूजा की झलकियां शेयर कर आस्था से जुड़ रहे हैं।

2025 में निर्जला एकादशी का असर


2025 की निर्जला एकादशी खास इसलिए है क्योंकि यह शुक्रवार को पड़ रही है, जो मां लक्ष्मी का दिन माना जाता है। इस दिन विष्णु-लक्ष्मी की संयुक्त पूजा का महत्व और बढ़ जाता है।

आधुनिक जीवन में जहां लोग भागदौड़ में आध्यात्मिकता से दूर हो रहे हैं, ऐसे में यह व्रत लोगों को अपनी आस्था और आत्मशक्ति से जुड़ने का अवसर देता है। डॉक्टरों का मानना है कि एक दिन बिना जल के व्रत रखने से शरीर की डिटॉक्स प्रक्रिया को मदद मिलती है, बशर्ते व्यक्ति स्वस्थ हो और सावधानी बरते।