Diwali 2024 : आज पूरे भारत में दिवाली की धूम देखने को मिल रही है। हर वर्ग के लोगों में अलग उत्साह नजर आ रहा है। खासकर बच्चे सुबह से ही आतिशबाजी करने में लगे हुए हैं। वहीं, घर की महिलाएं मंदिर को फूलों, दीपों और रंगोली से सजाने में जुटी हुई है। इस त्योहार पर मिठाइयों का भी काफी ज्यादा महत्व होता है। यह बुराई पर अच्छाई की जीत, अंधेरे में प्रकाश की जीत का त्योहार है। लोग इस दिन एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर सारे गिले-सिकवे भूलाकर नए रिश्ते की शुरूआत करते हैं।
वैसे तो दिवाली के दिन माता लक्ष्मी और भगवान श्री गणेश की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इसके साथ ही धन के देवता कुबेर देव की भी इस दिन पूजा की जाती है।
कुबेर देव (Kuber Dev)
भारत में ऐसे बहुत से धार्मिक स्थल है, जहां कुबेर देव की पूजा-अर्चना की जाती है। आज हम आपको एक ऐसी कहानी बताने जा रहे हैं जोकि देश की सबसे पुरानी कुबेर प्रतिमा की कहानी है। यह काफी रोचक है। भक्तों को जानकर काफी हैरानी भी होगी।
2 फीट ऊंची प्रतिमा का रहस्य (Diwali 2024)
धर्म शास्त्रों में कुबेर देव को उत्तर दिशा का रक्षक माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, यह दिशा धन का क्षेत्र है। यहां रहते हुए वह लोगों के धन की रक्षा करते हैं। जिनकी 12 फीट ऊंची बलुआ पत्थर की प्रतिमा मध्य प्रदेश के विदिशा में खड़ी मुद्रा में स्थापित है, जोकि पुरातत्व संग्रहालय के मुख्य द्वार पर स्थापित है। यह भारत का सबसे प्राचीन प्रतिमा है। जिसके एक ऐसी आश्चर्यचकित कहानी है। धनतेरस और दिवाली के दिन इनके दर्शन काफी ज्यादा शुभ माना गया है। पुरातत्वओं के अनुसार, यह प्रतिमा देश की सबसे ऊंची प्रतिमा मानी जाती है। जिसमें कुबेर देव सिर पर पगड़ी पहने हुए हैं। उनके कंधे पर उतराई और कानों में कुंडल सहित गले में कंठ है। वहीं, एक हाथ में थैली है। ऐसा माना जाता है कि वह थैली धन की पोटली है।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सैकड़ों साल पहले यह प्रतिमा बेस नदी में पेट के बोल पड़ी हुई थी। जिसे लोग चट्टान समझकर उसपर कपड़े धोया करते थे। यह सिलसिला काफी लंबे समय तक लगातार जारी रहा। कुछ समय बाद नदी का पानी कम हुआ, तो प्रतिमा का कुछ हिस्सा साफ-साफ नजर आने लगा। इसके बाद साल 1954 में पुरातत्व विभाग की टीम वहां पहुंची और इस मूर्ति को उठाकर सर्किट हाउस ले गई, जहां पुरातत्व संग्रहालय में इस मुख्य द्वार पर स्थापित कर दिया गया।
शहर का इतिहास
शहर के इतिहास की बात करें, तो यह एक समय में व्यापार का बहुत बड़ा केंद्र हुआ करता था। यहां हाथी के दांत और लोहे का बड़ा कारोबार व्यापारी किया करते थे। उस समय से ही यह प्रतिमा चलन में आ गई, तब से ही लोग कुबेर देव की पूजा-अर्चना के लिए दिवाली के खास मौके पर यहां पहुंचते हैं। यहां केवल जिले भर के ही नहीं, बल्कि पूरे भारत के लोग दर्शन के लिए आते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां पर कुबेर देव के दर्शन करने से धन संबंधी सारी समस्याएं खत्म हो जाती है।
(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है।)