पितृपक्ष हिंदू पंचांग का वह पवित्र समय है, जब परिवार अपने पूर्वजों को याद करते हैं और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं। मान्यता है कि पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है। यही कारण है कि पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे धार्मिक कार्य विशेष महत्व रखते हैं।
लेकिन कई बार ऐसा होता है कि परिवार के लोग अपने पूर्वजों की मृत्यु तिथि भूल जाते हैं या सही तिथि का ज्ञान नहीं होता। ऐसे में यह सवाल उठता है कि उन्हें कब श्राद्ध और तर्पण करना चाहिए। शास्त्रों में इस स्थिति के लिए विशेष दिन और विधि बताई गई है, जिसे “सर्वपितृ अमावस्या” कहा जाता है। इस दिन श्राद्ध करने से सभी पूर्वजों की आत्मा को तृप्ति मिलती है और पितरों का आशीर्वाद मिलता है।
पितृपक्ष में मृत्यु तिथि याद न होने पर क्या करें?
1. सर्वपितृ अमावस्या का महत्व
अगर किसी को अपने पूर्वजों की मृत्यु तिथि याद नहीं है, तो उन्हें सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध करना चाहिए। यह दिन पूरे पितृपक्ष का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन श्राद्ध करने से सभी पितरों की आत्मा संतुष्ट होती है और वे परिवार को आशीर्वाद देते हैं। पंडितों के अनुसार, यह दिन उन लोगों के लिए विशेष रूप से शुभ है, जिन्हें अपने पूर्वजों की तिथि ज्ञात नहीं होती।
2. श्राद्ध और तर्पण की विधि
पितृपक्ष में श्राद्ध और तर्पण करने के लिए सबसे पहले ब्राह्मणों को आमंत्रित कर भोजन कराना चाहिए। साथ ही, तिल, जल और पुष्प अर्पित करते हुए पूर्वजों का स्मरण करना चाहिए। पिंडदान करते समय जौ, तिल और चावल का प्रयोग अनिवार्य माना जाता है। ऐसा करने से पितरों की आत्मा को तृप्ति मिलती है और वे प्रसन्न होकर परिवार पर कृपा करते हैं।
3. पितरों का आशीर्वाद क्यों जरूरी है?
हिंदू धर्म में पितरों को देवताओं से भी पहले स्थान दिया गया है। कहा जाता है कि जब तक पितरों का आशीर्वाद नहीं मिलता, तब तक देवी-देवताओं की पूजा भी पूर्ण फल नहीं देती। इसलिए पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध करना हर किसी के लिए आवश्यक माना गया है। ऐसा करने से परिवार में न सिर्फ सुख-शांति आती है बल्कि जीवन से बाधाएं और कष्ट भी दूर हो जाते हैं।





