भारतीय संस्कृति में पितृ पक्ष का विशेष महत्व माना जाता है। यह समय सिर्फ पूर्वजों को याद करने का ही नहीं, बल्कि उनके प्रति आभार व्यक्त करने का भी होता है। शास्त्रों में उल्लेख है कि पितरों के आशीर्वाद के बिना जीवन में सुख और समृद्धि अधूरी रह जाती है। इसलिए हर साल भाद्रपद पूर्णिमा के बाद से अमावस्या तक के 15 दिन पितृ पक्ष के रूप में मनाए जाते हैं।
पितृ पक्ष 2025 में भी हजारों लोग अपने पितरों के लिए श्राद्ध और तर्पण करेंगे। खास बात यह है कि माना जाता है, अगर किसी की मृत्यु अकाल में हुई हो यानी असमय या असामान्य परिस्थितियों में, तो भी श्राद्ध कर्म और तर्पण के जरिए उस आत्मा को मोक्ष मिल सकता है। यही वजह है कि इस अवधि को बेहद पवित्र और जरूरी माना गया है।
तर्पण की धार्मिक मान्यता
पितृ पक्ष के दौरान तर्पण करना सबसे अहम माना जाता है। तर्पण का अर्थ है जल अर्पण करना। इसमें तिल, कुश और जल के साथ मंत्रोच्चारण कर पितरों को स्मरण किया जाता है। मान्यता है कि यह जल पितरों तक पहुंचकर उनकी आत्मा को तृप्त करता है। जब पितर प्रसन्न होते हैं तो परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहता है।
अकाल मृत्यु और मोक्ष की मान्यता
शास्त्रों में कहा गया है कि अकाल मृत्यु पाने वाली आत्मा अक्सर असंतुष्ट रहती है। उन्हें मोक्ष पाना कठिन होता है। लेकिन पितृ पक्ष में किया गया श्राद्ध और तर्पण उनकी आत्मा को शांति देता है। मान्यता है कि इस कर्म से आत्मा का बंधन टूटता है और वह मोक्ष की ओर अग्रसर होती है। इसीलिए हर परिवार को अपने पूर्वजों, चाहे उनकी मृत्यु कैसे भी हुई हो, तर्पण करना चाहिए।
पितृ पक्ष 2025 की तिथियां और महत्व
साल 2025 में पितृ पक्ष 7 सितंबर से शुरू होकर 21 सितंबर तक रहेगा। इन 15 दिनों में अलग-अलग तिथियों पर पितरों का श्राद्ध किया जाएगा। माना जाता है कि जिस दिन व्यक्ति की मृत्यु तिथि या अमावस्या आती है, उसी दिन उसका श्राद्ध करना चाहिए। इस दौरान सिर्फ भोजन अर्पण ही नहीं, बल्कि दान-पुण्य और ब्राह्मणों की सेवा का भी विशेष महत्व है।
तर्पण की विधि और पालन करने योग्य नियम
तर्पण करने की सही विधि
तर्पण प्रातःकाल सूर्योदय के समय किया जाना शुभ माना जाता है। इसके लिए दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए। हाथ में तिल, कुश और जल लेकर “ॐ पितृभ्यः नमः” मंत्र के साथ जल अर्पण किया जाता है। इस क्रिया को तीन बार दोहराना आवश्यक है।
पितरों के लिए आहार और दान
श्राद्ध के दिन विशेष भोजन तैयार किया जाता है। इसमें खिचड़ी, पूड़ी, कचौरी, हलवा, लड्डू और मौसमी सब्जियां बनाई जाती हैं। यह भोजन पहले पितरों को अर्पित किया जाता है, उसके बाद ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को खिलाया जाता है। साथ ही, अनाज, कपड़े और दक्षिणा का दान भी किया जाता है।
श्राद्ध काल में क्या न करें
पितृ पक्ष के दौरान शास्त्रों में कुछ नियम बताए गए हैं। जैसे इन दिनों नए कपड़े नहीं खरीदने चाहिए, शुभ कार्य जैसे विवाह, नामकरण या गृह प्रवेश नहीं करना चाहिए। इसके अलावा, मांस-मदिरा का सेवन और किसी का अपमान करने से भी बचना चाहिए। कहा जाता है कि ऐसा करने से पितर नाराज हो जाते हैं।
पितरों का आशीर्वाद और जीवन में सकारात्मक बदलाव
पितृ पक्ष सिर्फ धार्मिक कर्मकांड का नाम नहीं, बल्कि भावनात्मक जुड़ाव का भी समय है। यह हमें यह याद दिलाता है कि हम जिन सुख-सुविधाओं का आनंद ले रहे हैं, उसमें हमारे पूर्वजों की मेहनत और आशीर्वाद का बड़ा योगदान है। तर्पण और श्राद्ध के जरिए हम उनका सम्मान करते हैं और उनकी आत्मा को शांति देते हैं।
माना जाता है कि पितरों की प्रसन्नता से घर में सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और सौभाग्य बना रहता है। वहीं, अगर पितर असंतुष्ट हों तो जीवन में बाधाएं, कलह और आर्थिक समस्याएं बढ़ सकती हैं। इसीलिए हर व्यक्ति को पितृ पक्ष में अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार तर्पण और दान करना चाहिए।





