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Fri, Dec 19, 2025

7 सितंबर से पितृ पक्ष की होगी शुरुआत, इन नियमों का करें पालन

Written by:Sanjucta Pandit
Published:
धार्मिक मान्यता के अनुसार, गया में पिंडदान करने से परमात्मा की कृपा से 108 कुल (यानी पितृकुल) और 7 पीढ़ियों का उद्धार होता है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
7 सितंबर से पितृ पक्ष की होगी शुरुआत, इन नियमों का करें पालन

सनातन धर्म में पितृ पक्ष का बहुत ही ज्यादा महत्व है, इस दौरान पितरों की पूजा की जाती है। यह भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष से प्रारंभ होता है, जो कि 15 दिनों तक चलता है। इस दौरान कुछ स्थानों पर पिंडदान के लिए लोग पहुंचते हैं। बता दें कि पितृ पक्ष के दौरान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करने के लिए लोग श्रद्धा और दान करते हैं। ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष के दौरान पितृ धरती लोक पर आते हैं और सभी कष्टों को दूर करते हैं।

आज के आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि साल 2025 में पितृ पक्ष की शुरुआत कब हो रही है, साथ ही आपको यह भी बताएंगे कि बिहार में ही पिंडदान क्यों किया जाता है।

इस दिन होगी शुरुआत

वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल भाद्रपद महीने की पूर्णिमा तिथि 7 सितंबर को देर रात 1:41 पर शुरू हो रही है, जिसका समापन 7 सितंबर को ही रात 11:38 पर होगा। ऐसे में रविवार के दिन ही पितृ पक्ष की शुरुआत होगी और इसकी समाप्ति पितृ अमावस्या यानी 21 सितंबर को होगी।

नियमों का करें पालन

पितृ तर्पण और श्राद्ध को लेकर हिंदू धर्म में बहुत सारे नियम बनाए गए हैं, जिनका पालन करना आवश्यक माना जाता है। इनमें सही तिथि, ब्राह्मण भोजन, तर्पण, पवित्रता, दान और पवित्र स्थान शामिल हैं। ऐसा कहा जाता है कि श्राद्ध हमेशा पितरों की मृत्यु तिथि पर ही करना चाहिए। श्रद्धा के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना और दान-दक्षिणा देना महत्वपूर्ण माना जाता है। इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। वहीं, तर्पण के लिए पितृ पक्ष के दौरान हर दिन जल, तिल और कुशा से पितरों का तर्पण करें। घर में सात्विक भोजन ही बनना चाहिए। मांस-मछली सहित तामसिक भोजन करने से बचें। पितृ पक्ष के दौरान जरूरतमंदों को वस्त्र, कंबल, चप्पल, किताब आदि का दान करें।

लाखों लोग जाते हैं गया

गया जिला बिहार राज्य में स्थित है, जहां पितृ पक्ष के दौरान पिंडदान किया जाता है। इस दौरान पितृ पक्ष मेले का भी आयोजन किया जाता है। जिसमें देश-विदेश से लगभग लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। इस जगह को गया श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है। गया में इस धार्मिक कार्य को बड़े आदर और श्रद्धा के साथ किया जाता है। यहां पर अनेक पुराने और पवित्र मंदिर भी हैं।

पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, गयासुर एक असुर था जो कि भगवान विष्णु का परम भक्त था। उन्होंने भगवान विष्णु की अत्यंत भक्ति और तपस्या की, जिससे भगवान प्रसन्न हो गए और उनकी तपस्या को प्रसन्नता से स्वीकार किया और उनसे एक वरदान मांगने का अवसर दिया। गयासुर ने वरदान के रूप में पापों से मुक्ति और स्वर्ग की प्राप्ति मांगी। भगवान विष्णु ने इसे स्वीकार कर दिया। जिसके बाद लोग गयासुर के दर्शन मात्र से ही अपने सभी पापों से मुक्त हो जाते थे और मरने के बाद उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती थी। जिससे स्वर्ग के देवता चिंतित हो गए और भगवान विष्णु के पास जा पहुंचे। भगवान विष्णु गयासुर के शरीर में समा गए, जिससे गयासुर तनिक भी विचलित नहीं हुआ।

इस बात से भगवान एक बार फिर प्रसन्न हो गए और गयासुर से एक और वरदान मांगने को कहा। यह सुनते ही गयासुर ने अनंत काल तक उसी स्थान पर विराजमान रहने का वरदान मांग लिया। जिसके बाद उसका शरीर पत्थर में बदल गया। उस समय श्री हरि ने कहा कि जो भी व्यक्ति पितृ पक्ष के दौरान श्रद्धा और भक्ति भाव से गया में अपने पितरों के लिए पिंडदान करेगा, तो उनके मृत पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होगी।

(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना अलग-अलग जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है।)