Rudrabhishek of Lord Shiva : सावन माह चल रहा है और ये भगवान शिव का प्रिय महीना माना जाता है। मान्यता है कि इस माह में भगवान शिव की पूजा और शिवलिंग का अभिषेक करने से विशेष पुण्य लाभ मिलता है और कामनाओं की पूर्ति होती है। आज हम आपको बताने जा रही है रुद्राभिषेक संबंधी कुछ विशेष बातें जिनका पालन कर आप भी भोलेनाथ की पूजा अर्चना कर सकते हैं।
रुद्राभिषेक पाठ एवं उसके भेद
पूरा संसार अपितु पाताल से लेकर मोक्ष तक जिस अक्षर की सीमा नहीं। ब्रम्हा आदि देवता भी जिस अक्षर का सार न पा सके उस आदि अनादी से रहित निर्गुण स्वरुप ॐ के स्वरुप में विराजमान जो अद्वितीय शक्ति भूतभावन काल के भी काल गंगाधर भगवान महादेव को प्रणाम करते हैं।
शास्त्रों और पुराणों में पूजन के कई प्रकार बताये गए हैं, लेकिन जब हम शिवलिंग स्वरुप महादेव का अभिषेक करते हैं तो उस जैसा पुण्य अश्वमेघ जैसे यज्ञ से भी प्राप्त नहीं होता। स्वयं सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने भी कहा है कि जब हम अभिषेक करते हैं तो स्वयं साक्षात महादेव उस अभिषेक को ग्रहण करने लगते हैं। संसार में ऐसी कोई वस्तु, कोई भी वैभव, कोई भी सुख, ऐसी कोई भी वस्तु या पदार्थ नहीं है जो हमें अभिषेक से प्राप्त न हो सके। वैसे तो अभिषेक कई प्रकार से बताये गए हैं, लेकिन मुख्य पांच ही प्रकार हैं।
अभिषेक के प्रमुख प्रकार
1. रूपक या षडंग पाठ – रूद्र के छह अंग कहे गये है इन छह अंग का यथा विधि पाठ षडंग पाठ कहा गया है ।
शिव कल्प शुक्त — 1. प्रथम हृदय रूपी अंग है
पुरुष शुक्त — 2. द्वितीय सर रूपी अंग है ।
अप्रतिरथ सूक्त — 3. कवचरूप चतुर्थ अंग है ।
मैत्सुक्त — 4. नेत्र रूप पंचम अंग कहा गया है ।
शतरुद्रिय — 5. अस्तरूप षष्ठ अंग कहा गया है।
इस प्रकार सम्पूर्ण रुद्राष्टाध्यायी दस अध्यायों का षडंग रूपक पाठ कहलाता है। षडंग पाठ में विशेष बात है कि इसमें आठवें अध्याय के साथ पाँचवें अध्याय की आवृति नहीं होती है।
2. रुद्री या एकादिशिनि – रुद्राध्याय की गई ग्यारह आवृति को रुद्री या एकादिशिनी कहते हैं। रुद्रों की संख्या ग्यारह होने के कारण ग्यारह अनुवाद में विभक्त किया गया है।
3. लघुरुद्र – एकादिशिनी रुद्री की ग्यारह आवृत्तियों के पाठ के लघुरुद्र पाठ कहा गया है।
यह लघु रूद्र अनुष्ठान एक दिन में ग्यारह ब्राह्मणों का वरण करके एक साथ संपन्न किया जा सकता है, तथा एक ब्राह्मण द्वारा अथवा स्वयं ग्यारह दिनों तक एक एकादिशिनी पाठ नित्य करने पर भी लघु रूद्र संपन्न होता है।
4. महारुद्र – लघु रूद्र की ग्यारह आवृति अर्थात एकादिशिनी रुद्री का 121 आवृति पाठ होने पर महारुद्र अनुष्ठान होता है। यह पाठ ग्यारह ब्राह्मणों द्वारा 11 दिन तक कराया जाता है।
5 अतिरुद्र – महारुद्र की 11 आवृति अर्थात एकादिशिनि रुद्री का 1331 आवृति पाठ होने से अतिरुद्र अनुष्ठान संपन्न होता है ये-
(1)अनुष्ठात्मक
(2) अभिषेकात्मक
(3) हवनात्मक
इन तीनों प्रकार से किये जा सकते हैं। शास्त्रों में इन अनुष्ठानों का अत्यधिक फल है व तीनों का फल समान है।
रुद्राभिषेक में प्रयुक्त होने वाले प्रशस्त द्रव्य व उनके फल
1. जल से रुद्राभिषेक – वृष्टि होती है।
2. कुशोदक जल से – समस्त प्रकार की व्याधि की शांति होती है।
3. दही से अभिषेक – पशु प्राप्ति होती है।
4. इक्षु (गन्ने) का रस – लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए।
5. मधु (शहद) – धन प्राप्ति के लिए, यक्ष्मारोग (तपेदिक) से मुक्ति।
6. घृत से – अभिषेक व तीर्थ जल से भी मोक्ष प्राप्ति के लिए।
7. दूध से अभिषेक – प्रमेह रोग के विनाश के लिए एवं पुत्र प्राप्ति हेतु।
8. जल की की धारा – भगवान शिव को जल अतिप्रिय है अत: ज्वर के कोप को शांत करने के लिए जलधारा से अभिषेक करना चाहिए।
9. सरसों के तेल – इससे अभिषेक करने से शत्रु का विनाश होता है। यह अभिषेक विवाद मुकदमे संपत्ति विवाद न्यायालय के विवाद को दूर करते हैं।
10.शक्कर मिले जल से – पुत्र की प्राप्ति होती है।
11. इत्र मिले जल से – अभिषेक करने से शरीर की बीमारी नष्ट होती है ।
12. दूध से मिले काले तिल – इससे अभिषेक करने से भगवन शिव का स्मरण करने से सारे रोग व शत्रु पर विजय प्राप्त होती है।
13. समस्त प्रकार के प्रकृतिक रसों से अभिषेक हो सकता है ।
सार
उपर्युक्त द्रव्यों से महालिंग का अभिषेक करने पर भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होकर भक्तों की समस्त कामनाओं का पूर्ति करते है। अत: भक्तों को यजुर्वेद विधान से रुद्रों का अभिषेक करना चाहिए।
विशेष
रुद्राध्याय के केवल पाठ अथवा जप से ही सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। रूद्र का पाठ या अभिषेक करने या कराने वाला महापातक रूपी पंजर से मुक्त होकर सम्यक ज्ञान प्राप्त होता है और अंततः विशुद्ध ज्ञान प्राप्त करता है ।
साभार : आचार्य पंडित राहुल भारद्वाज
वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
(डिस्क्लेमर : उपरोक्त लेख धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। हम इसकी पुष्टि नहीं करते हैं।)