Gita Updesh : श्रीमद्भगवद्गीता सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच का संवाद है जोकि 18 अध्यायों और 700 श्लोक में बंटा है, जिनमें धर्म योग, कर्म योग और ज्ञान योग का विस्तृत वर्णन है। दरअसल, कुरुक्षेत्र की रणभूमि में जब अर्जुन ने अपने परिवारजनों, गुरुओं और मित्रों को सामने शस्त्र के साथ देखकर युद्ध करने से इंकार कर दिया, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें जीवन के विभिन्न पहलुओं, कर्तव्यों और धर्म के बारे में ज्ञान दिया। उन्होंने अर्जुन को बताया कि आत्मा अमर है और मृत्यु केवल शरीर का परिवर्तन है। कर्तव्यों का पालन करना ही धर्म है और परिणामों की चिंता किए बिना कर्म करना चाहिए। इसके अलावा, श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपने विराट रूप का दर्शन कराया। जिसके बाद यह लड़ाई लड़ी गई, जिसमें पांडवों को जीत हासिल हुई।
पढ़ें गीता उपदेश
श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया,
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥”
इसका अर्थ है कि इंसान को केवल कर्म करने का अधिकार है, उसके फलों की चिंता का कभी नहीं होता। इसलिए कर्मफल करते जाना चाहिए, न की कर्म का त्याग करना चाहिए। अपने कर्तव्यों का पालन करना ही सबसे महत्वपूर्ण होता है। कर्मफल भगवान की इच्छा पर निर्भर है, इसलिए मनुष्य को अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, जिससे वह सफल और संसार का सबसे सुखी इंसान बन सके।
कभी ना करें जुल्म
गीता उपदेश के अनुसार, जिंदगी में ऐसे इंसान पर कभी जुल्म नहीं करना चाहिए, जिसके पास पुकारने के लिए परमात्मा के अलावा कोई ना हो। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यह सिखाया कि हर जीव में परमात्मा का अंश होता है। इसलिए सभी के साथ उचित और न्यायपूर्ण व्यवहार करना ही धर्म है।
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