हिन्दू धर्म में जब कभी भी किसी भी प्रकार की पूजा-पाठ की जाती है या किसी भी प्रकार का मांगलिक कार्य किया जाता है तो सबसे पहले भगवान गणेश को ही पूजा जाता है। जिस तरह सप्ताह का प्रत्येक दिन किसी न किसी देवी-देवताओं को समर्पित होता है ठीक उसी तरह पदभार का दिन विघ्नहर्ता गणेश को समर्पित होता है। इसके अलावा हर महीने को आने वाली चतुर्थी तिथि भी भगवान गणेश को ही समर्पित होती है।
हर महीने की कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जाता है। इस दिन विधि-विधान से भगवान गणेश की पूजा अर्चना की जाती है। हर माह में आने वाली संकष्टी चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के अलावा अलग अलग नामों से भी जाना जाता है। आज 17 मार्च को चैत्र माह की चतुर्दशी तिथि है। इसे भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी भी कहा जाता है। आज यानी संकष्टी चतुर्थी के दिन कई शुभ और अशुभ योग बन रहे हैं, जिनके बारे में जानना ज़रूरी है, तो चलिए जानते।

आज है संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi 2025)
शुभ समय
- ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 4 बजकर 53 मिनट से 5 बजकर 41 मिनट तक
- विजय मुहूर्त: दोपहर 2 बजकर 30 मिनट से 3 बजकर 18 मिनट तक
- गोधूलि मुहूर्त: शाम 6 बजकर 28 मिनट से 6 बजकर 52 मिनट तक
- अमृत काल: सुबह 7 बजकर 34 मिनट से 9 बजकर 23 मिनट तक
- अभिजीत मुहूर्त: रात 12 बजकर 6 मिनट से 12 बजकर 54 मिनट तक
अशुभ समय
राहु काल: सुबह 7 बजकर 59 मिनट से 9 बजकर 29 मिनट तक
गुलिक काल: दोपहर 2 बजे से 3 बजकर 30 मिनट तक
पूजा के लिए उत्तम नक्षत्र
भरणी, रोहिणी, मृगशिरा, आश्लेषा, पूर्वाफाल्गुनी, चित्रा, हस्त, स्वाति, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्वाषाढ़ा, श्रावण, धनिष्ठा, शतभिषा, रेवती, पूर्वाभाद्रपद।
॥ ऋणमुक्ति श्री गणेश स्तोत्रम् ॥
ॐ स्मरामि देवदेवेशंवक्रतुण्डं महाबलम्।
षडक्षरं कृपासिन्धुंनमामि ऋणमुक्तये॥
महागणपतिं वन्देमहासेतुं महाबलम्।
एकमेवाद्वितीयं तुनमामि ऋणमुक्तये॥
एकाक्षरं त्वेकदन्तमेकंब्रह्म सनातनम्।
महाविघ्नहरं देवंनमामि ऋणमुक्तये॥
शुक्लाम्बरं शुक्लवर्णंशुक्लगन्धानुलेपनम्।
सर्वशुक्लमयं देवंनमामि ऋणमुक्तये॥
रक्ताम्बरं रक्तवर्णंरक्तगन्धानुलेपनम्।
रक्तपुष्पैः पूज्यमानंनमामि ऋणमुक्तये॥
कृष्णाम्बरं कृष्णवर्णंकृष्णगन्धानुलेपनम्।
कृष्णयज्ञोपवीतं चनमामि ऋणमुक्तये॥
पीताम्बरं पीतवर्णपीतगन्धानुलेपनम्।
पीतपुष्पैः पूज्यमानंनमामि ऋणमुक्तये॥
सर्वात्मकं सर्ववर्णंसर्वगन्धानुलेपनम्।
सर्वपुष्पैः पूज्यमानंनमामि ऋणमुक्तये॥
एतद् ऋणहरं स्तोत्रंत्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः।
षण्मासाभ्यन्तरे तस्यऋणच्छेदो न संशयः॥
सहस्रदशकं कृत्वाऋणमुक्तो धनी भवेत्॥