सनातन धर्म एक से बढ़कर एक से बढ़कर एक पर्व-त्योहार मनाए जाते हैं। जिनमें होली, दिवाली, दशहरा, रक्षाबंधन, रंभा तीज, मकर संक्रांति, अमावस्या, पितृपक्ष, पूर्णिमा, गंगा दशहरा आदि शामिल है। इनमें से कुछ त्यौहार ऐसे हैं जो पूरे देश में बड़ी भी धूमधाम से मनाया जाते हैं, तो कुछ रीजनल त्यौहार किसी पार्टिकुलर क्षेत्र में सेलिब्रेट किया जाता है। त्योहार लोगों को एक दूसरे को प्रेम भाव से रहना सीखाते हैं। इस दौरान लोग सारे पुराने गिले-सिकवे भूलाकर एक-दूसरे को गले लगा लेते हैं। इसके अलावा, यह आध्यात्मिक के साथ-साथ मानसिक शांति का भी महत्वपूर्ण जरिया माना जाता है।
ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रंभा तीज का व्रत रखा जाता है, जो कि आज है। इस व्रत को रखने से शुभ, समृद्धि आती है। इसके अलावा वैवाहिक कार्य में आ रही अड़चने दूर हो जाती है।

महत्व
रंभा तीज का महत्व विवाहित महिलाओं से होता है। इस व्रत को रखकर वह अपने पति की लंबी उम्र और वैवाहिक सुखी जीवन की कामना करती हैं। यह व्रत बहुत ही कठिन होता है, जिसे निर्जला रखना पड़ता है। शुभ मुहूर्त पर पूजा पाठ करने से पति-पत्नी के बीच चल रही सारी समस्याएं दूर हो सकती है और वह एक बेहतरीन जीवन जी सकते हैं।
बन रहे ये योग
हिंदू पंचांग के अनुसार, सर्वार्थ सिद्धि योग रात 10 बजकर 38 मिनट से अगले दिन 05 बजकर 24 मिनट तक रहेगा। इसी दौरान रवि योग यानी रात 10 बजकर 38 मिनट से अगले दिन 05 बजकर 24 मिनट तक रहेगा। अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 51 मिनट से 12 बजकर 46 मिनट तक रहेगा। इसके साथ ही, विजय मुहूर्त 02 बजकर 37 मिनट से 03 बजकर 32 मिनट तक रहेगा।
पौराणिक कथा
बता दें कि इस अवसर पर अप्सरा रंभा की पूजा की जाती है, जिन्हें सौंदर्य और सौभाग्य की देवी माना गया है। मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान निकले 14 रत्नों में से अप्सरा रंभा भी एक थीं। इस दिन 16 श्रृंगार करके व्रत रखने और पूजा करने से देवी रंभा के साथ-साथ भगवान शिव और माता पार्वती का भी आशीर्वाद मिलता है। सच्चे मन से मांगी गई साधना अवश्य पूरी होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, रंभा ने ही रावण को श्राप दिया था कि उसकी मृत्यु एक स्त्री के कारण होगी। यही कारण था कि मां सीता का हरण करने के बाद भी रावण उसे छू भी न सका।
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