हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत त्यंत महत्वपूर्ण और शुभ व्रत माना गया है। यह व्रत हर माह में दो बार आता है। एक बार शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को और दूसरी बार कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को… इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा की जाती है। मान्यता है कि प्रदोष व्रत रखने से जीवन के सारे दुख, संकट और बाधाएं दूर हो जाती हैं। साथ ही साधक को सुख, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
प्रदोष शब्द का अर्थ संध्या समय होता है। यानी इस दिन सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक उपवास किया जाता है और सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। शिवलिंग पर गंगाजल, दूध, शहद और बेलपत्र चढ़ाना बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन शिव चालीसा और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से विशेष लाभ मिलता है।
महत्व
यह दिन भगवान शिव को समर्पित माना जाता है। इस दिन व्रत रखने से जातकों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। महीने में दो बार इस व्रत को रखा जाता है, जिस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है। इस व्रत को करने से जातक के सभी पाप धुल जाते हैं। इसके अलावा उन्हें मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दौरान शिव भक्त देव आदि देव महादेव की भक्ति में लीन हो जाते हैं। प्रदोष व्रत करने वाले को दिनभर व्रत रखने के बाद शाम को दीप जलाकर भगवान शिव की आरती करनी चाहिए। इसके बाद कथा सुनकर व्रत का समापन किया जाता है। हालांकि, आज हम आपको बताएं कि सितंबर के महीने में कब-कब प्रदोष व्रत पड़ रहा है।
शुभ मुहूर्त
- पहला प्रदोष व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी पर पड़ेगा। यह 5 सितंबर की सुबह 04:08 बजे से शुरू होकर 6 सितंबर की रात 03:12 बजे तक रहेगी। पूजा का शुभ समय 5 सितंबर की शाम 06:38 से रात 08:55 बजे तक का है। यह दिन शुक्रवार को होने के कारण शुक्र प्रदोष व्रत कहलाएगा।
- वहीं, आश्विन माह का प्रदोष व्रत कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर आएगा। यह 18 सितंबर की रात 11:24 बजे से शुरू होकर 19 सितंबर की रात 11:36 बजे तक रहेगी। शिवपूजन का प्रदोष काल 19 सितंबर की शाम 06:21 से 08:43 बजे तक रहेगा। यह व्रत भी शुक्रवार को ही है, इसलिए इसे भी शुक्र प्रदोष व्रत कहा जाएगा।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के समय जब हलाहल विष निकला था तो भगवान शिव ने संसार की रक्षा के लिए उस विष को अपने कंठ में धारण किया थ। उस समय त्रयोदशी तिथि थी। तभी से इस व्रत का विशेष महत्व माना जाने लगा। ऐसी भी मन्यता है कि जो भक्त पूरी श्रद्धा और निष्ठा से प्रदोष व्रत करता है, उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और जीवन में नई ऊर्जा का संचार होता है।
ऐसे करें पूजा
- इस दिन सुबह उठकर सबसे पहले स्नान करें।
- इसके बाद साफ वस्त्र पहनें।
- अब भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति या प्रतिमा स्थापित करें।
- फिर बिल्व पत्र, धतूरा, अक्षत, पंचामृत, गंगाजल, दीपक, धूप, दूध, शहद, फल, आदि चढ़ाएं।
- इसके बाद भगवान शिव की आरती उतारें।
(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।)





