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Sun, Dec 21, 2025

शबरी जयंती : श्रद्धा, समर्पण और भक्ति की अटूट मिसाल, जब श्रीराम ने स्वीकार किए जूठे बेर

Written by:Shruty Kushwaha
Published:
शबरी जयंती निस्वार्थ प्रेम की अद्भुत गाथा का पर्व है। माता शबरी ने जीवनभर भगवान श्रीराम की प्रतीक्षा की। उन्होंने अपने आराध्य को प्रेमपूर्वक जूठे बेर अर्पित किए जिसे प्रभु ने सहर्ष स्वीकार किया। इस कथा से हमें सीख मिलती है कि ईश्वर को सिर्फ प्रेम और श्रद्धा से प्राप्त किया जा सकता है और इसके लिए किसी आडंबर की ज़रूरत नहीं है। शबरी जयंती हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति बिना किसी भेदभाव के सच्चे हृदय से की जानी चाहिए।
शबरी जयंती : श्रद्धा, समर्पण और भक्ति की अटूट मिसाल, जब श्रीराम ने स्वीकार किए जूठे बेर

Shabari Jayanti : आज शबरी जयंती है। शबरी जयंती हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाई जाती है। इस वर्ष यह पर्व 20 फरवरी को मनाया जा रहा है। जब-जब भी श्रद्धा और भक्ति की बात होगी..माता शबरी का जिक्र आएगा। उनकी निष्ठा और प्रेमपूर्ण प्रतीक्षा का वर्णन रामायण में मिलता है, जहाँ उन्होंने भगवान श्रीराम के आगमन की आस में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया।

माता शबरी के बारे में हिंदू धर्मग्रंथ ‘रामायण’ में विस्तार से वर्णन किया गया है। वे प्रभु श्रीराम की अनन्य भक्त थीं। वे भील समुदाय से थीं और अपने गुरु मतंग ऋषि के निर्देश पर उन्होंने भगवान राम की प्रतीक्षा में अपना पूरा जीवन व्यतीत कर दिया। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर, भगवान राम ने उनके आश्रम में आकर उनके द्वारा प्रेमपूर्वक अर्पित जूठे बेर स्वीकार किए। यह घटना भक्ति, समर्पण और प्रेम का प्रतीक मानी जाती है।

शबरी जयंती आज

शबरी जयंती का विशेष महत्व है क्योंकि ये दिन भक्ति, समर्पण और समानता का प्रतीक है। इस दिन, भक्त माता शबरी और भगवान राम की पूजा करते हैं, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है। कई लोग इस दिन व्रत भी रखते हैं। बरी जयंती के अवसर पर, विभिन्न स्थानों पर धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।  कहा जाता है कि इस दिन भगवान राम की कृपा से शबरी को मोक्ष प्राप्त हुआ था।

प्रभु श्रीराम, शबरी और जूठे बेर की कथा

धार्मिक कथा के अनुसार, माता शबरी एक भील कन्या थीं जो बचपन से ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति की थीं। विवाह के समय जब उन्होंने देखा कि उनके समुदाय में पशु बलि की प्रथा है तो वे इसे सहन नहीं कर पाईं और निश्चय किया कि वे कभी विवाह नहीं करेंगीं। इसके बाद वे ऋषि मतंग के आश्रम में पहुंच गईं। मतंग ऋषि ने उनके हृदय की पवित्रता और निष्ठा को देख उन्हें अपने आश्रम में सेवा करने की अनुमति दी। शबरी ने वर्षों तक ऋषि-मुनियों की सेवा की और अपनी निष्ठा से उनकी कृपा प्राप्त की। मतंग ऋषि अपने अंतिम समय में शबरी से कहा कि एक दिन भगवान श्रीराम स्वयं इस आश्रम में आएंगे और उन्हें दर्शन देंगे।

यह भविष्यवाणी सुनकर माता शबरी श्रीराम के आगमन की प्रतीक्षा करने लगी। वे प्रतिदिन आश्रम की सफाई करतीं, रास्ते में फूल बिछातीं और श्रीराम के आने की राह तकती रही। उनकी प्रतीक्षा वर्षों तक चलती रही, लेकिन उनकी भक्ति में कभी कोई कमी नहीं आई। अंततः, जब श्रीराम अपनी पत्नी सीता की खोज में लक्ष्मण के साथ वन में घूम रहे थे तब वे शबरी के आश्रम पहुंचे। शबरी अत्यंत आनंदित हुईं और प्रेमपूर्वक उनका स्वागत किया। उन्होंने श्रीराम के लिए जंगल में उगने वाले मीठे बेर एकत्रित किए। लेकिन उनके मन में ये बात कौंधी कि अगर बेर खट्टे हुए तो प्रभु को पसंद नहीं आएंगे। इस कारण वे प्रत्येक बेर को पहले स्वयं चखकर देखतीं और सिर्फ मीठे बेर ही राम को अर्पित करतीं। श्रीराम ने शबरी की इस भक्ति और प्रेम को समझा और प्रेमपूर्वक जूठे बेर स्वीकार किए और खाए। इस बात पर लक्ष्मण थोड़े असमंजस में थे कि श्रीराम जूठे फल क्यों खा रहे हैं, लेकिन श्रीराम ने कहा कि “इन बेरों में केवल स्वाद ही नहीं, बल्कि शुद्ध प्रेम और भक्ति भी समाहित है। ऐसी भक्ति के आगे किसी भी नियम का कोई मूल्य नहीं।” इस कथा से हमें सीख मिलती है कि भगवान को पाने के लिए धन-दौलत नहीं, बल्कि सच्चे प्रेम और भक्ति की ज़रूरत होती है।