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Sun, Dec 21, 2025

Shani Dev: शनिवार की शाम करें शनि कवच का पाठ, भक्तों को मानसिक रुप से मिलेगी शांति

Written by:Sanjucta Pandit
Published:
शनि कवच में शनि देव के शक्तिशाली मंत्रों का संग्रह होता है, जिनका जाप और पाठ करने से जातकों को मानसिक रुप से शांति मिलती है।
Shani Dev: शनिवार की शाम करें शनि कवच का पाठ, भक्तों को मानसिक रुप से मिलेगी शांति

Shani Dev : ज्योतिष शास्त्र में शनिवार को शनि भगवान की पूजा और उनकी उपासना का विशेष महत्व होता है। इस दिन को शनि देव की खास पूजा, मंत्र जप और कठिन उपवास किया जाता है। इससे शनि दोष से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति की जीवन में स्थिरता आती है। यहां तक कि कई लोग इस दिन उपवास करते हैं और शनि देव को नमन करते हैं, ताकि उनकी कुदृष्टि से बचा जा सके। हिंदू धर्म में शनि देव को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। बता दें कि उन्हें कर्म कारक देवता कहा जाता है क्योंकि वे व्यक्ति के कर्मों के अनुसार उसे फल प्रदान करते हैं। शनि देव को न्याय का देवता भी कहा जाता है, क्योंकि वे हमेशा न्यायपूर्वक निर्णय करते हैं।

पूजा विधि

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें।
  • शनि देव की मूर्ति या तस्वीर को साफ करें।
  • अब उनकी प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाएं। इसमें सरसों या तिल का तेल डालें।
  • इस दौरान शनि चालीसा का पाठ करें।
  • इसके साथ ही “ॐ शं शनैश्चराय नमः” मंत्र का जाप करें।

शाम को करें शनि कवच का पाठ

वहीं, शनिवार को शनि कवच का पाठ करने से भक्तों को शनि देव की कृपा मिलती है। साथ ही संकटों से उनकी रक्षा होती है। बता दें कि शनि कवच में शनि देव के शक्तिशाली मंत्रों का संग्रह होता है, जिनका जाप और पाठ करने से जातकों को मानसिक रुप से शांति मिलती है।

शनि कवच मंत्र

श्रृणुष्व मुनिशार्दूल शनैश्चरकृतं शुभम्।
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम्॥

कवचं देवतावासं वज्रपञ्जरसंनिभम्।
शनैश्चरप्रीतिसाध्यं सर्वसौभाग्यदायकम्॥

शिरो मे मन्दः पातु भालं मे भास्करः सदा।
नेत्रे छायात्मजः पातु कर्णो यमसहोदरः॥

नासां वैवस्वतः पातु मुखं मे भास्करेश्वरः।
स्निग्धकण्ठश्च मे कण्ठं भुजौ पातु महाभुजः॥

स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रदः।
वक्षः पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्तथा॥

नाभिं ग्रहपतिः पातु मन्दः पातु कटिं तथा।
ऊरू ममान्तकः पातु यमः पातु जानुनी सदा॥

पदौ मन्दगति पातु सर्वाङ्गं पातु पिप्पलः।
अङ्गोपाङ्गानि सर्वाणि रक्षेन्मे सूर्यनन्दनः॥

इत्येतत्कवचं दिव्यं पठेत्सूर्यसुतस्य यः।
न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवति सूर्यजः॥

व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युसंस्थोऽन्तर्दशिकः।
कवचं पठति नित्यं न पीडा जायते क्वचित्॥

इत्येतत्कवचं दिव्यं सौरेरमिततेजसः।
प्रपठेत् प्रयतो नित्यं सर्वान्कामानवाप्नुयात्॥

शनि कवच मंत्र

ॐ नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥

(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।)