श्री केदारनाथ धाम के कपाट खुले, जानिए बाबा केदारनाथ से जुड़ी पौराणिक कथाएं और धार्मिक मान्यताएं

केदारनाथ मंदिर का इतिहास हजारों वर्ष पुराना माना जाता है। स्कंद पुराण और शिव पुराण में इस ज्योतिर्लिंग का उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि पांडवों ने महाभारत काल में मंदिर का प्रारंभिक निर्माण कराया था जिसे बाद में पांडव वंश के राजा जनमेजय ने पूरा किया। 8वीं-9वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया और इसके पास अपनी समाधि ली। हर साल यहां दर्शन के लिए देश-दुनिया से लाखों श्रद्धालु आते हैं।

Shri Kedarnath Dham Doors Open : आज सुबह वैदिक मंत्रोच्चार और पूर्ण विधि-विधान के साथ श्री केदारनाथ धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए। हिमालय की गोद में बसा यह पवित्र तीर्थस्थल भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और चार धाम यात्रा का अभिन्न अंग है। इस अवसर पर हजारों भक्तों की भीड़ बाबा केदारनाथ के दर्शनों के लिए उमड़ पड़ी।

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित केदारनाथ धाम के साथ अनेक हिंदू मान्यताएं, परंपराएं और समृद्ध इतिहास जुड़ा हुआ है। इस मंदिर का गर्भगृह बेहद प्राचीन है जिसमें स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के बाहर नंदी की प्रतिमा और सभामंडप में पांडवों और द्रौपदी की मूर्तियां हैं। इस बार केदारनाथ धाम में 60 लाख श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है। मंदिर के कपाट खुलने के अवसर पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी वहां मौजूद रहे।

केदारनाथ धाम को लेकर हिंदू मान्यताएं और पौराणिक कथाएं

श्री केदारनाथ धाम को भगवान शिव का ‘जागृत ज्योतिर्लिंग’ माना जाता है जहां शिवशंकर स्वयं अपनी दिव्य ज्योति के रूप में विराजमान हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह मंदिर महाभारत काल से जुड़ा है। मान्यता है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडव अपने गोत्र बंधुओं की हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की शरण में आए। शिव, जो पांडवों से रुष्ट थे उन्होंने बैल का रूप धारण कर लिया और अन्य पशुओं के बीच छिप गए। भीम ने अपने विशाल रूप में दो पहाड़ों पर पैर फैलाकर सभी पशुओं को निकलने दिया, लेकिन शिव (बैल के रूप में) नहीं निकले। जब भीम ने उन्हें पकड़ने की कोशिश की, तो शिव भूमि में समा गए, और उनका पृष्ठ भाग केदारनाथ में स्वयंभू शिवलिंग के रूप में प्रकट हुआ।

एक अन्य कथा के अनुसार, केदारनाथ का शिवलिंग और नेपाल के पशुपतिनाथ का शिवलिंग मिलकर एक पूर्ण ज्योतिर्लिंग बनाते हैं। केदारनाथ में शिव के पृष्ठ भाग की पूजा होती है, जबकि पशुपतिनाथ में उनके मुख की। इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण ऋषि ने तपस्या की थी। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर शिव ने ज्योतिर्लिंग के रूप में यहां सदा वास करने का वरदान दिया।

केदारनाथ धाम से जुड़ी परंपराएं

केदारनाथ मंदिर की परंपराएं सदियों पुरानी हैं और हिंदू धर्म की गहरी आस्था को दर्शाती हैं। मंदिर के कपाट हर साल अप्रैल या मई में अक्षय तृतीया के आसपास खुलते हैं और कार्तिक पूर्णिमा (नवंबर) में सर्दियों के लिए बंद हो जाते हैं। इस दौरान भगवान केदारनाथ की पंचमुखी प्रतिमा को ऊखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में ले जाया जाता है जहां छह महीने तक उनकी पूजा होती है।

एक अनूठी परंपरा के अनुसार, जब मंदिर के कपाट बंद होते हैं तो यहां एक अखंड ज्योति जलाई जाती है जो छह महीने तक जलती रहती है। भक्तों का विश्वास है कि इस दौरान देवता मंदिर की पूजा करते हैं। कपाट खुलने से पहले भगवान की पंचमुखी डोली गौरीकुंड से केदारनाथ तक यात्रा करती है जिसमें हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं।

(डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी विभिन्न धार्मिक स्रोतों से संकलित की गई है। धार्मिक मान्यताओं की सटीकता की गारंटी नहीं दी जा सकती है।)


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Shruty Kushwaha

Shruty Kushwaha

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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