सनातन धर्म एक से बढ़कर एक नियम, कानून प्रसिद्ध है। लोग मंदिर जाते हैं तो अलग तरीके से पूजा-पाठ करते हैं, वहीं घर के लिए अलग नियम बनाए गए हैं। मंदिर जाकर भगवान के दर्शन करने का अपना अलग ही महत्व है। बता दें कि कुछ लोग रोजाना मंदिर जाते हैं और यहां पूजा-पाठ करके कुछ देर वहीं पर बैठते हैं, तो कुछ लोग थोड़े दिन बाद जाकर दर्शन करते हैं। कुछ लोग केवल पर्व-त्यौहार में ही मंदिर जाना पसंद करते हैं।
भारत में मंदिरों की कोई कमी नहीं है। इसकी बनावट, साज-सज्जा, धार्मिक महत्व, पौराणिक कथाएं और इतिहास काफी रोचक है। चारों दिशाओं में आपको किसी न किसी भगवान का मंदिर अवश्य मिलेगा।
क्यों होता है आवश्यक?
मंदिर वह स्थान है, जहां जाकर आपको मानसिक शांति मिलती है। सकारात्मक ऊर्जा से इंसान भर उठता है। हालांकि, मंदिर में भगवान के दर्शन करना जितना जरूरी होता है, उतना ही जरूरी वहां की सीढ़ियों पर बैठना भी होता है। इसके बारे में शास्त्रों में बताया गया है कि आखिर मंदिर की सीढ़ियों पर कुछ देर बैठना क्यों जरूरी होता है।
सदियों से निभाई जा रही परंपरा
शास्त्रों की मानें तो पूजा करने के बाद कुछ देर लोग मंदिर की सीढ़ियों पर बैठते हैं। यह परंपरा सदियों से निभाई जा रही है। बहुत कम लोगों को ही यह पता है कि आखिर यह किस वजह से किया जाता है। अमूमन श्रद्धालु ऐसा ही सोचते हैं कि उन्हें कुछ समय मंदिर में बिताना चाहिए, इसलिए वह सीढ़ियों पर बैठ जाते हैं क्योंकि उनके दादा, पिताजी, घर वाले ऐसा ही करते आ रहे हैं। जवाब और इससे पीछे की पौराणिक कथा एकदम अलग है।
धार्मिक मान्यता
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मंदिर के शिखर को देव विग्रह का मुख और उसकी सीढ़ियों को उनके चरण पादुका कहा जाता है। ऐसे में भगवान के दर्शन करने के बाद सीढ़ियों पर कुछ देर बैठने से मनोकामनाएं जल्दी पूर्ण होती हैं और बिना सीढ़ियों पर बैठे भक्तों की पूजा पूरी नहीं मानी जाती। इसलिए ईश्वर के दर्शन मात्र से पूजा सफल नहीं होती। यदि मंदिर में सीढ़ियां नहीं हैं, तो मंदिर की चौखट पर कुछ देर बैठकर इस नियम को पूरा करें, जिससे आपकी सारी परेशानियां जल्दी दूर हों।
(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है।)





