Tue, Dec 23, 2025

ऐसी है ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा, जानें मान्यता और पौराणिक कथा

Written by:Ayushi Jain
Published:
ऐसी है ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा, जानें मान्यता और पौराणिक कथा

सावन (Sawan) का महीना कल से शुरू होने वाला है। इस पूरे महीने को बेहद पवित्र माना जाता है। ये महीना भोलेनाथ को सबसे ज्यादा प्रिय होता है। ऐसे में वह अपने भक्तों से प्रसन्न होकर उनकी हर मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। इस महीने में व्रत और पूजा करने का भी एक खास महत्व है। इतना ही नहीं सावन में 12 ज्योतिर्लिंगों की यात्रा भी कई यात्री करते हैं।

ऐसे में आज हम आपको 12 ज्योतिर्लिग में से एक ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर (Omkareshwar Jyotirling) से जुड़ी कुछ रोचक कथा और कहानी बताने जा रहे हैं। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश का ऐतिहासिक मंदिर है। यहां का इतिहास भी काफी पुराना है। पौराणिक कथाओं में भी इस मंदिर की महिमा के बारे में काफी कुछ बताया गया है। तो चलिए जानते है –

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आपको बता दे, मध्यप्रदेश का ओंकारेश्वर इतना प्रसिद्ध है कि यहां दूर दूर से भक्त दर्शन करने के लिए आते हैं। वहीं सावन के महीने में तो यहां सबसे ज्यादा भीड़ देखने को मिलती है। दरअसल, ओंकारेश्वर में कुल 68 तीर्थ हैं। ऐसे में 33 कोटि देवता परिवार के साथ निवास कर इन तीर्थों की यात्रा और भगवान के दर्शन लिए यहां आते है।

मान्यता –

इस मंदिर को लेकर ये मान्यता है कि अगर कोई भक्त कोई भी तीर्थ स्थल पर क्यों ना चले जाए लेकिन अगर उसने ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग पर अपने सभी तीर्थों का जाल नहीं अर्पित किया तो वो अधूरा तीर्थ माना जाता है। इसलिए हमेशा लोग चारधाम यात्रा करने के बाद ओंकारेश्वर और महाकाल मंदिर जरूर आते है।

नर्मदा नदी का महत्व –

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ओंकारेश्वर ज्योतिषलिंग के दर्शन करने के साथ ही साथ नर्मदा नदी में भी स्नान करने का एक अलग ही महत्व बताया गया है। कहा जाता है कि यमुना जी में 15 दिन और गंगा जी में 7 दिन स्नान करने का जो फल मिलता है उतना फल सिर्फ नर्मदा नदी के दर्शन करने से ही मिल जाता है।

पौराणिक कथा-

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, जब राजा मान्धाता ने नर्मदा नदी के किनारे इस पर्वत पर घोर तपस्या की तो भगवान शंकर प्रसन्न हो गए। ऐसे में यहां पर भगवान शंकर प्रसन्न होकर प्रकट हुए। भगवान शंकर के प्रकट होने के बाद राजा ने उनसे यहीं निवास करने का वरदान मांगा। उस वक्त से ही इस तीर्थ का काफी ज्यादा महत्व माना जाता है। उसके बाद से ही इस तीर्थ नगरी को ओंकार-मान्धाता के रूप में जाना जाने लगा।