धनतेरस पर कुबेर मन्दिर में भक्तों का तांता, हो रहा कोविड-19 की गाइडलाइन का पालन

मंदसौर, तरूण राठौड़। आज सुबह से ही गुप्तकालीन प्राचीन कुबेर मंदिर पर दर्शन करने के लिए बड़ी तादाद में भक्त पहुंच रहे हैं। कोविड 19 को देखते हुए मंदिर समिति व प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम कर रखे है। यह मंदिर शहर से 3 किमी दूर खिलचीपुरा में है। 1300 साल पुरानी यह प्रतिमा खिलजी साम्राज्य से पहले की बताई जाती है। खिलजी के शासनकाल में ही खिलचीपुरा बसाया था। यहां आज तक कभी गर्भगृह को ताले नहीं लगे हैं। धनतेरस पर हजारों भक्त भगवान कुबेर के दर्शन करने अलसुबह से ही पहुंचने लगते हैं।

पुजारी हेमंतगिरी गोस्वामी ने बताया कि यहा परंपरा के मुताबिक गर्भगृह पर आज तक ताला नहीं लगाया है। पहले तो यहां दरवाजा भी नहीं था। यहां कुबेर प्रतिमा चतुर्भुज है जिसके एक हाथ में धन की पोटली, दो हाथों में शस्त्र व एक हाथ में प्याला है। इसमें कुबेर नेवले पर सवार हैं। भगवान कुबेर की इस तरह की प्रतिमा देश में गुजरात के बाद मंदसौर में है। यहां ढाई फीट की प्रतिमा है जिसे तंत्र व धन प्राप्ति के लिए माना जाता है।

कुबेर महाराज के साथ विराजित हैं भगवान शिव व गणेश
कुबेर के साथ धोलागिरी महादेव व गणेश की प्रतिमा भी विराजित है। यहां गर्भगृह में जाने के लिए मात्र तीन फीट का दरवाजा है। भक्तों को बैठकर ही प्रवेश करना पड़ता है और वापस निकलते समय पीठ दिखाए बिना निकलना पड़ता है। धनतेरस पर सुबह 4 बजे मंदिर पर कुबेर की तंत्र पूजा की जाएगी। उसके बाद दर्शन होंगे। सुबह 8 बजे हवन व महाआरती होगी। धनतेरस पर धन के देवता के साथ शिव पूजन के लिए गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र सहित अन्य प्रांतों से श्रद्धालु आते हैं।

खिलचीपुरा विश्व प्रसिद्ध अष्टमुखी भगवान पशुपतिनाथ मंदिर से लगभग चार किमी दूरी पर है। विश्व में दो ही स्थान ऐसे हैं, जहां शिव पंचायत में कुबेर भी शामिल हैं। एक चार धामों में शामिल श्री केदारनाथ तथा दूसरी मूर्ति मंदसौर के खिलचीपुरा स्थित धौलागढ़ महादेव मंदिर में है। पुरातत्व विभाग के डॉ. कैलाश शर्मा के अनुसार श्री धौलागढ़ महादेव मंदिर लगभग 1200 साल पहले बना मराठाकालीन है। इसी मंदिर में स्थापित भगवान कुबेर की मूर्ति उत्तर गुप्तकाल में सातवीं शताब्दी में निर्मित है। मराठाकाल में धौलागिरी महादेव मंदिर के निर्माण के दौरान इसे गर्भगृह में स्थापित किया गया था। मंदिर में भगवान गणेश व माता पार्वती की मूर्तियां भी हैं। 1978 में श्री कुबेर की मूर्ति की पहचान हुई। मूर्ति में कुबेर बड़े पेट वाले, चतुर्भुजाधारी सीधे हाथ में धन की थैली और तो दूसरे में प्याला धारण किए हुए हैं। नर वाहन पर सवार इस मूर्ति की ऊंचाई लगभग तीन फीट है।


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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