जानें, अन्य ज्योतिर्लिंगों में क्यों खास है त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग? क्या है मान्यता

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Trimbakeshwar Jyotirlinga

Trimbakeshwar Jyotirlinga : सावन का महीना चल रहा है। कल सावन का तीसरा सोमवार है। ये महीना भगवान शिव को समर्पित है। इस साल सावन का महीना दो माह का है। ऐसे में भक्त भोलेनाथ के प्रसिद्ध मंदिरों में दर्शन करने जाना पसंद कर रहे हैं। वहीं हर महादेव मंदिर में भक्तों का तांता देखने को मिल रहा है। इन्हीं में से एक है 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक त्र्यंबकेश्वर महादेव जो नाशिक में मौजद है। इस मंदिर की काफी ज्यादा मान्यता है। ये ज्योतिर्लिंग बाकि ज्योतिर्लिंगों में से काफी ज्यादा अलग और खास है। यहां भगवन शिव की लिंगस्वरूप नहीं बल्कि त्रिदेव की पूजा होती है।

जानें, अन्य ज्योतिर्लिंगों में क्यों खास है त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग? क्या है मान्यता

आपको बता दे, नाशिक शहर से 28 किमी की दूरी पर त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मौजूद है। ये मंदिर गोदावरी और गौतमी नदी के तट पर बना हुआ है। यहां हर 12 साल में कुंभ का मेला लगता है। मंदिर के पास ही अमृत कुंड मौजूद है। मंदिर के आसपास मौजूद हर व्यक्ति इस मंदिर की महिमा के बारे में बता देता है। खास बात ये है कि मंदिर का निर्माण काले पत्थरों द्वारा की गई है। करीब 30 सालों में इस मंदिर का निर्माण पूरा किया गया। यहां सावन और शिवरात्रि के समय भक्तों की काफी ज्यादा भीड़ देखने को मिलती है।

इसलिए खास है त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग

भगवान भोलेनाथ के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में त्र्यंबकेश्वर सबसे अलग है। ये एक मात्र ऐसा ज्योलिर्लिंग है जहां ज्योतिर्लिंग ही नहीं बल्कि त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र की पूजा होती है। वहीं खास बात ये है कि यहां कोई शिवलिंग नहीं बल्कि एक गड्ढा है। यहां तीन छोटे-छोटे अंगुठे के आकार के लिंग है। इस मंदिर की काफी ज्यादा मान्यता है। इस मंदिर में सबसे ज्यादा भक्त कालसर्प दोष की पूजा करवाने के लिए आते हैं। मंदिर की वास्तुकला बेहद आकर्षित है। ये मंदिर मराठा शिल्पकला का अच्छा उदाहरण है। काले पत्थरों से मंदिर का निर्माण किया गया है। मुगल शासक औरंगजेब ने 1690 में त्र्यंबकेश्वर मंदिर के शिवलिंग को तुड़वा दिया था। लेकिन 1751 में मराठों ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया। इसके लिए 16 लाख खर्च किए गए।

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Ayushi Jain

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