वरूथिनी एकादशी 2025: शुभ फल देने वाली यह तिथि क्यों है खास, पूजा विधि और भोग की जानकारी यहां

वरूथिनी एकादशी का हिंदू धर्म में खास महत्व है। यह व्रत हर साल वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति और सुख-शांति की प्राप्ति होती है।

आज 24 अप्रैल 2025 को वरूथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi 2025) का व्रत रखा जा रहा है। यह एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है और इस दिन को लेकर ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। वरूथिनी एकादशी हिन्दू पंचांग के अनुसार वैशाख महीने की कृष्णपक्ष की एकादशी को आती है।

जो भी व्यक्ति इस दिन श्रद्धा भाव उपवास रखता है उसके सारे पाप दूर हो जाते हैं और उसे अक्षय फल प्राप्त होता है। ऐसा भी माना जा रहा है कि इस एकादशी का प्रभाव बहुत ही विशेष होता है और यह जीवन में आने वाले संकटों से रक्षा करता है। अरे नहीं जानते हैं इस दिन की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और इससे जुड़ी ख़ास बातें।

वरूथिनी एकादशी 2025 शुभ मुहूर्त

ब्रह्मा मुहूर्त सुबह चार बजकर 19 मिनट से 5 बजकर 3 मिनट तक रहेगा, यह समय ध्यान, मंत्र जाप और पूजा के लिए सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। विजय मुहूर्त दोपहर 2 बजकर 30 मिनट से 3 बजकर 23 मिनट तक रहेगा, यह समय जीत और सफलता दिलाने वाला होता है। आज के दिन इस मुहूर्त में अगर आप कोई नई शुरुआत का संकल्प लेते हैं तो उसका अच्छा परिणाम मिलता। इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए और व्रत का संकल्प लेना चाहिए। रात्रि में जागरण और भजन-कीर्तन का भी महत्व है।

वरूथिनी एकादशी व्रत की पूजा विधि

  • वरूथिनी एकादशी पर व्रती को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए।
  • इसके बाद घर के पूजा स्थान को साफ करें और भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर के सामने दीप जलाएं।
  • पीले फूलों और चंदन से भगवान का पूजन करें।
  • भगवान विष्णु को तुलसी दल, पंचामृत और मौसमी फल अर्पित करें।
  • “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करते हुए पूजा करें।
  • दिन भर व्रत रखें, निर्जल व्रत सबसे श्रेष्ठ माना गया है, परंतु आवश्यकता अनुसार फलाहार कर सकते हैं।
  • रात्रि में भगवान का कीर्तन करें और अगली सुबह पारण करें।
  • इस व्रत में दान का विशेष महत्व होता है। भोजन, वस्त्र, जल आदि का दान पुण्यदायी होता है।

वरूथिनी एकादशी का महत्व और पौराणिक कथा

वरूथिनी एकादशी से जुड़ी कथा के अनुसार, एक समय नर्मदा नदी के तट पर मांडाता नामक एक राजा तपस्या कर रहा था। एक बार जब वह ध्यान में लीन था, तो एक जंगली भालू आया और उसका पैर काटने लगा। राजा ने श्रीहरि विष्णु से प्रार्थना की। भगवान प्रकट हुए और भालू को मार दिया। परंतु भालू के काटने से राजा का पैर विकृत हो गया।

भगवान विष्णु ने राजा को वरूथिनी एकादशी व्रत रखने की सलाह दी। राजा ने विधिपूर्वक व्रत किया, जिससे उसका पैर पुनः सामान्य हो गया और उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई। इस कथा से यह सिद्ध होता है कि वरूथिनी एकादशी का व्रत हर तरह की पीड़ा और पाप से मुक्ति दिलाता है।

वरूथिनी एकादशी व्रत में क्या खाएं ?

केला, सेब, अनार, पपीता, दूध, दही और सूखे मेवे, सिंघाड़े का आटा, साबूदाना, राजगिरा, सेंधा नमक का प्रयोग करें

वरूथिनी एकादशी के दिन कौन से भोग भगवान को प्रिय होते हैं?

भगवान विष्णु को पीले रंग के वस्त्र, फूल और मिठाई बहुत प्रिय होती है। इस दिन भगवान को केले, नारियल, खीर, पंचामृत और तुलसी पत्र के साथ पूजन करें।

प्रमुख मंत्र

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

ॐ विष्णवे नमः

ॐ नारायणाय नमः

इन मंत्रों का जाप कम से कम 108 बार करें। साथ ही श्री विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ भी इस दिन विशेष फलदायी होता है।

वरूथिनी एकादशी व्रत के लाभ

  • पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति
  • रोगों से छुटकारा और स्वास्थ्य में सुधार
  • वैवाहिक जीवन में सुख और शांति
  • आर्थिक संकट से मुक्ति

Disclaimer- यहां दी गई सूचना सामान्य जानकारी के आधार पर बताई गई है। इनके सत्य और सटीक होने का दावा MP Breaking News नहीं करता।


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Bhawna Choubey

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