केदारनाथ धाम (Kedarnath Temple) के कपाट खुलने के बाद से ही भारी संख्या में श्रद्धालु बाबा केदार के दर्शन के लिए पहुँच रहे हैं। हर दिन भक्तों की भीड़ मंदिर में उमड़ रही है और सभी बाबा के दर्शन कर अपने जीवन को धन्य मान रहे हैं।
हाल ही में निरंजनी अखाड़े की साध्वी हर्षा रिछारिया नई सोशल मीडिया पर केदारनाथ धाम से जुड़ी एक ख़ास जानकारी साझा की है। उन्होंने बताया कि मंदिर में शिवलिंग पर चढ़ाया गया जल और दूध मंदिर के पीछे स्थित अमृत कुंड में इकट्ठा होता है, शायद बहुत कम लोग ही जानते हैं, की आख़िर शिवलिंग पर चढ़ाया गया जल कहा जाता है।

केदारनाथ मंदिर के शिवलिंग पर चढ़े जल का रहस्य अब सामने आया है
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित केदारनाथ धाम को लेकर हमेशा से कई रहस्य और चमत्कार लोगों को आकर्षित करते हैं। इन्हीं में से एक है शिवलिंग पर चढ़ाए गए जल का रहस्य। भक्त पूरे श्रृद्धा से भोलेनाथ को जल अर्पित करते हैं, लेकिन यह जल कहां जाता है, ये हमेशा सवाल बना रहा। अब सामने आया है कि ये जल एक विशेष कुंड में जाकर समा जाता है, जिसका नाम है त्रिपुष्करिणी कुंड।
ये कुंड मंदिर परिसर के पास स्थित है और बेहद ही अद्भुत तरीके से काम करता है। यहां जल बिना कहीं बहे खुद-ब-खुद समा जाता है और बाहर नहीं आता। वैज्ञानिकों और पुरातत्व विशेषज्ञों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि यह कुंड एक प्राकृतिक जल निकासी तंत्र का हिस्सा हो सकता है, जो सदियों से सक्रिय है।
जहां समा जाता है शिवलिंग पर चढ़ाया जल
केदारनाथ मंदिर के ठीक पीछे स्थित त्रिपुष्करिणी कुंड एक ऐसा स्थान है, जिसे बहुत कम लोग जानते हैं। यहां पर शिवलिंग पर अर्पित किया गया जल एक पतली सी जलधारा बनाकर इस कुंड में समा जाता है। खास बात ये है कि कुंड हमेशा जल से खाली रहता है और कभी भरता नहीं, जबकि यहां रोज़ हजारों लीटर जल आता है।
जानकारों की मानें तो इस कुंड के नीचे एक ऐसी भूमिगत जल निकासी व्यवस्था है, जो सीधे अलकनंदा या मंदाकिनी नदी से जुड़ी हो सकती है। यह कुंड पत्थरों से घिरा है और इसकी रचना बहुत ही सूक्ष्म और वैज्ञानिक तरीके से की गई प्रतीत होती है। मंदिर के पुरोहितों का मानना है कि यह शिव का चमत्कार है और इस कुंड का रहस्य भगवान की कृपा से ही छुपा हुआ है।
धार्मिक मान्यता और वैज्ञानिक नजरिया
इस रहस्य को लेकर श्रद्धालुओं की आस्था भी जुड़ी है और वैज्ञानिकों की रुचि भी। धार्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो लोग मानते हैं कि भोलेनाथ स्वयं इस जल को ग्रहण करते हैं। इसलिए यह कभी बाहर नहीं दिखाई देता और ना ही मंदिर परिसर में पानी जमा होता है। यह भगवान शिव की अलौकिकता का प्रमाण माना जाता है।
वहीं दूसरी ओर वैज्ञानिक मानते हैं कि हिमालय क्षेत्र की भौगोलिक बनावट के कारण यहां जमीन के नीचे ऐसी चट्टानें हैं, जो पानी को तेजी से सोख लेती हैं। इसके अलावा यह भी संभावना जताई जाती है कि यह कुंड किसी प्राचीन सुरंग या जल निकासी व्यवस्था से जुड़ा हो सकता है, जिसे हजारों साल पहले मंदिर निर्माण के समय तैयार किया गया होगा।
इस तरह यह रहस्य आस्था और विज्ञान के बीच एक अद्भुत संतुलन बनाता है। श्रद्धालु जहां इसे भोलेनाथ की कृपा मानते हैं, वहीं वैज्ञानिक इसे प्राकृतिक इंजीनियरिंग का नायाब उदाहरण बताते हैं।