शीतला अष्टमी पर क्यों लगाया जाता है मां को बासी भोजन का भोग? जानिए यहां

शीतला अष्टमी के दिन मां शीतला की पूजा करने का विधान है। इस दिन मां को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। माना जाता है कि इस भोग से मां अति प्रसन्न होती है और रोगों से निजात दिलाती है।

Sheetala Ashtami Bhog : चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतला अष्टमी का व्रत रखा जाता है। इस दिन शीतला माता की विधिवत पूजा करने का विधान है। मान्यता है कि इस दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता है बल्कि मां को भी बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। इसी बासी भोजन को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। इसलिए इसे स्थानीय भाषा में बासौड़ा, बूढ़ा बसौड़ा या बसियौरा नामों से भी जाना जाता है। ये त्योहार विशेष तौर पर मालवा, निमाड़, राजस्थान और हरियाणा के कुछ क्षेत्रों में मनाया जाता है इस साल शीतला अष्टमी पर काफी खास योग बन रहा है।  जानिए आखिर मां शीतला को बासी भोजन का भोग लगाने के पीछे क्या है परंपरा।

Sheetala Ashtami 2023: शीतला अष्टमी के दिन माता को लगाते हैं बासी भोजन का भोग, यहां पढ़ें पौराणिक कथा

मां शीतला को क्यों लगाते हैं बासी भोजन का भोग?

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मां शीतला को बासी खाना अति प्रिय है। इसी के कारण सप्तमी तिथि को ही भोग के लिए मीठे चावल, पुए, चने की दाल आदि बना लिए जाते हैं जिन्हें दूसरे दिन भोग के रूप में इस्तेमाल करते हैं। जानिए इसके पीछे की पौराणिक कथा।

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार मां शीतला ने सोचा कि पृथ्वी में जाकर देखती हूं कि आखिर मेरी पूजा कौन-कौन करता है। ऐसे में उन्होंने एक बुढ़िया का रूप लेकर एक गांव में पहुंच गई। जब माता गांव में पहुंची,तो किसी ने उनके ऊपर उबले चावल का पानी डाल दे दिया। जिसके कारण उनके पूरे शरीर में छाले हो गए और बुरी तरीके से जलन होने लगी। ऐसे में मां शीतला ने हर किसी से सहायता मांगी लेकिन किसी ने भी उनकी मदद नहीं की।

मां शीतला को रास्ते में एक कुम्हार परिवार की महिला मिली। उस महिला ने जैसे ही उन्हें देखा वैसे ही उन्हें घर में बुलाकर ठंडे पानी डाला। ऐसे में मां की पीड़ा कुछ कम हुई। तब माता ने उस महिला से खाने के लिए कुछ मांगा। ऐसे में महिला ने कहा कि मेरे पास तो रात के बचे दही और  ज्वार की रबड़ी ही है, तो उन्होंने उसे ही खाया। ऐसे में उन्हें अंदर से शीतलता मिली। इसके बाद कुम्हारिन ने माता से कहा कि आपके बाल काफी बिखरे हुए है लाओ इन्हें में संवार देती हूं। ऐसे में जब वो महिला मां के बाल संवार रही थी तभी उसे मां के सिर में तीसरी आंख दिखी। जिसे देखकर कुम्हारिन  भयभीत होकर भागने लगी। ऐसे में मां ने कहा कि पुत्री भागों मत मैं शीतला मां हूं और पृथ्वी में भ्रमण के लिए निकली हूं। कुम्हारिन ने जैसे ही इस बात को सुना वो भाव विभोर हो गई है और मां के सामने झुक गई और कहां कि मेरे घर में ऐसा कुछ नहीं है कि मैं आपको बिछा सकु। ऐसे में मां मुस्करा कर कुम्हारिन के घर में मौजूद गधे में बैठ गई।

कुम्हारिन का निस्वार्थ भाव से प्रसन्न होकर माता ने उसे वर मांगने के लिए कहा, तो उसने मां से कहा कि आप हमेशा इसी गांव में निवास करें। इसके साथ ही जो व्यक्ति चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी तिथि को आपकी पूजा करने के साथ बासी भोजन का भोग लगाएगा। उसे हर बीमारी से निजात मिलने के साथ सुख-समृद्धि प्राप्त हो। माता शीतला ने कहा कि ऐसा ही होगा।

इसी कारण हर साल मां को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है , जिससे व्यक्ति के घर में मौजूद हर सदस्य रोग, दोष और भय से दूर रहें।