Jagannath Temple : ओडिशा में हर साल पुरी के जगन्नाथ देव की रथ यात्रा निकाली जाती है। जगन्नाथ देव इस रथ यात्रा में अपने बड़े भाई बलभद्र और छोटी बहन सुभद्रा के साथ अलग-अलग रथों पर सवार होकर मौसी के घर गुंदीचा मंदिर जाते हैं। यह यात्रा बेहद खास होती है। इस यात्रा को देखने के लिए दुनियाभर से लोग आते हैं। बड़े स्तर पर इस यात्रा को निकालने का आयोजन धूमधाम के साथ किया जाता है। 20 जून को इस साल रथ यात्रा का आयोजन किया जा रहा है। इस यात्रा को उड़ीसा के पुरी में एक उत्सव के तौर पर मनाया जाता है जिसमें लाखों लोग शामिल होते हैं। देश ही नहीं विदेशों से श्रद्धालु इस यात्रा में शामिल होने के लिए पहुंचते है। जगन्नाथ पुरी मंदिर का महाप्रसाद प्राप्त कर भक्त स्वयं को धन्य समझते हैं। आखिर एस प्रसाद को महाप्रसाद क्यों कहा जाता है? चलिए जानते हैं –
आपको बता दें, पुरी की जगन्नाथ मंदिर की रसोई 1 मेगा किचन है। जहां सिर्फ भाप के द्वारा भोजन पकाया जाता है। यह दुनिया की सबसे अच्छी और विशाल रसोई में से एक है। यहां बनाया जाने वाला खाना कभी भी बर्बाद नहीं होता है। ना ही कभी कम पड़ता है। खास बात यह है कि भगवान को भोग में चढ़ाने के लिए इस रसोई में बनाया जाने वाला प्रसाद कभी भी चखा नहीं जाता है। लेकिन उसके प्रसाद में आज तक कोई भी कमी नहीं रही। लोगों का कहना है कि महालक्ष्मी की देखरेख में इस मंदिर की रसोई में खाना बनता है। भोजन के स्वाद में भी कोई कमी नहीं आती है।
Jagannath Temple : इसलिए कहा जाता है महाप्रसाद
वैसे तो आपने अभी तक भगवान को चढ़ाए जाने वाले भोग को प्रसाद कहते हुए सुना होगा। लेकिन पुरी में भगवान जगन्नाथ को भोग में चढ़ाए जाने वाले प्रसाद को महाप्रसाद कहा जाता है। इसके पीछे की मान्यता काफी अलग है। कहा जाता है कि एक बार प्रभु वल्लभाचार्य एकादशी के व्रत के समय पुरी के जगन्नाथ मंदिर गए थे। उस दौरान उन्होंने वहां पर यह प्रसाद चखा था। प्रसाद खाने से पहले उन्होंने अपने स्तुति द्वादशी के दिन समाप्त की थी। उसके पास प्रसाद को ग्रहण किया तब से ही मंदिर के प्रसाद को महा प्रसाद के नाम से जाना जाने लगा। आपको बता दें भगवान जगन्नाथ को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद में छप्पन भोग बनाया जाता है। यह भोग बेहद खास होता है। सभी व्यंजनों को मिट्टी के बर्तन में बनाकर तैयार किया जाता है।