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Fri, Dec 5, 2025

मध्यप्रदेश का वो मंदिर, जहां श्रद्धा के नाम पर दी जाती थी महिलाओं की बलि, आज भी मौजूद हैं चबूतरे

Written by:Bhawna Choubey
मध्यप्रदेश के शहडोल जिले में स्थित पंचमठा मंदिर में आज भी मौजूद हैं वे पत्थर जिन पर कभी सती प्रथा के दर्दनाक निशान उकेरे गए थे। इतिहास के इन साक्ष्यों में कैद हैं उन औरतों की खामोश चीखें जिन्हें आस्था के नाम पर जिंदा जलाया गया।
मध्यप्रदेश का वो मंदिर, जहां श्रद्धा के नाम पर दी जाती थी महिलाओं की बलि, आज भी मौजूद हैं चबूतरे

ज़रा सोचिए… एक ऐसा मंदिर जहां पूजा-पाठ के बीच मौजूद हैं वे साक्ष्य, जो कभी आस्था नहीं बल्कि औरतों की बेबसी की निशानी थे। मध्यप्रदेश के शहडोल जिले के सिंहपुर क्षेत्र में स्थित पंचमठा (Panchmatha) मंदिर आज सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि इतिहास की एक ऐसी कड़वी सच्चाई का गवाह है जिसे सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

कभी यहां श्रद्धा के नाम पर महिलाओं को सती होने के लिए मजबूर किया जाता था यानी पति की मृत्यु के बाद उन्हें उसकी चिता में जिंदा जलाया जाता था। आज भी मंदिर परिसर के भीतर बने पत्थरों पर उकेरी गई आकृतियाँ उस दौर की दर्दनाक कहानी सुनाती हैं।

सती चबूतरों में कैद है महिलाओं की मूक पुकार

पंचमठा मंदिर परिसर में मौजूद सती चबूतरे (Sati Chabutra) समय की मार झेलते हुए आज भी खामोश खड़े हैं। इन चबूतरों पर महिलाओं और पक्षियों की आकृतियाँ खुदी हुई हैं जो उस दौर में सती हुई महिलाओं की स्मृति में बनाई जाती थीं। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि उनके पूर्वजों के समय में कई महिलाएं यहां पति की चिता पर सती हुई थीं। तब इसे समाज में पुण्य और श्रद्धा का प्रतीक माना जाता था। लेकिन इन चबूतरों को देखकर अब सवाल उठता है, क्या वाकई श्रद्धा का मतलब अपनी जान दे देना था? आज ये चबूतरे टूट चुके हैं, काई से ढँके हैं और देखरेख के अभाव में धरोहरों की सूची में सिर्फ नाममात्र रह गए हैं।

पुरातत्व विभाग की उपेक्षा और इतिहास का बिखरता साक्ष्य

स्थानीय लोगों का कहना है कि पंचमठा मंदिर परिसर को कई साल पहले पुरातत्व विभाग ने अपने अधीन घोषित किया था। लेकिन आज हालत यह है कि दीवारें टूटी हुई, शिलालेख क्षतिग्रस्त, और जानकारी बोर्ड गायब हैं। कई लोग इस स्थान के महत्व से अनजान होकर यहां पूजा करने या पिकनिक मनाने तक पहुंच जाते हैं। इस ऐतिहासिक स्थल की दुर्दशा देखकर लगता है कि हम अपनी विरासत को धीरे-धीरे मिटने दे रहे हैं।

सती प्रथा: भारत के इतिहास का सबसे काला अध्याय

मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड, मालवा और महाकौशल क्षेत्रों में सती प्रथा के सैकड़ों प्रमाण मिलते हैं। शहडोल का पंचमठा मंदिर भी इन्हीं प्रमुख स्थलों में से एक है।इतिहासकारों के अनुसार, सती प्रथा 4वीं शताब्दी से लेकर 18वीं शताब्दी तक भारतीय समाज में चलती रही। कई जगहों पर इसे धर्म और मर्यादा का रूप दिया गया, जबकि असल में यह स्त्री उत्पीड़न का भयावह चेहरा था। जब कोई महिला सती होती थी, तो उसके नाम पर सती स्तंभ या चबूतरा बनाया जाता था। इन्हीं पत्थरों पर उसकी आकृति या पक्षी बनाकर उकेरी जाती थी, जिसे बाद में पवित्र स्थल मान लिया जाता था।

राजा राममोहन राय और ब्रिटिश शासन का कानून

सती प्रथा को अमानवीय और क्रूर प्रथा मानते हुए राजा राममोहन राय ने 19वीं सदी की शुरुआत में इसके खिलाफ बड़ा आंदोलन शुरू किया। उनके प्रयासों से प्रभावित होकर ब्रिटिश गवर्नर लॉर्ड विलियम बेंटिक ने वर्ष 1829 में सती प्रथा पर आधिकारिक रूप से प्रतिबंध लगाया। इस कानून के बाद भी कुछ इलाकों में यह प्रथा गुप्त रूप से जारी रही, लेकिन धीरे-धीरे समाज ने इसे नकारना शुरू किया। राजा राममोहन राय के इस कदम ने भारत में महिला अधिकारों के संघर्ष की नींव रखी।

श्रद्धा और अंधविश्वास के बीच फंसा सच

सिंहपुर के पंचमठा मंदिर की कहानी आज भी समाज को यह सोचने पर मजबूर करती है कि श्रद्धा और अंधविश्वास की सीमा कहां खत्म होती है। कभी यहां महिलाएं पवित्रता के नाम पर खुद को जलाती थीं, आज लोग उसी स्थल पर मनोकामनाएं मांगने पहुंचते हैं। इतिहास का यह विरोधाभास बताता है कि समाज ने विकास तो किया, लेकिन मानवता और स्मृति की संवेदनशीलता कहीं पीछे छूट गई। कई पुरातत्वविदों का मानना है कि अगर इस मंदिर को सही रूप से संरक्षित किया जाए, तो यह महिला इतिहास और समाज सुधार के अध्ययन का अहम केंद्र बन सकता है।