1976 में भारतीय टीम वेस्टइंडीज दौरे पर थी और टेस्ट सीरीज 1-1 की बराबरी पर थी। किंग्सटन में खेला गया चौथा और आखिरी टेस्ट मैच भारत के लिए ऐतिहासिक जीत का मौका बन सकता था। दरअसल भारत ने तीसरे टेस्ट में जीत हासिल कर सीरीज में वापसी की थी और अंतिम टेस्ट को जीतकर इतिहास रचने का सपना देख रही थी। लेकिन मैदान पर वेस्टइंडीज के तेज गेंदबाजों ने वो तूफान ला दिया, जिसने सबकुछ बदल दिया।
दरअसल माइकल होल्डिंग को उस दौर में ‘विस्परिंग डेथ’ कहा जाता था। उनकी गेंदबाजी इतनी तेज और सटीक होती थी कि बल्लेबाजों को बैटिंग करना नहीं, बचना पड़ता था। किंग्सटन टेस्ट में होल्डिंग की अगुवाई में वेस्टइंडीज ने भारत को मानसिक और शारीरिक रूप से झकझोर कर रख दिया। भारत ने पहली पारी में 306 रन बनाए लेकिन इस दौरान अंशुमन गायकवाड़ और बृजेश पटेल को चोट लगने के चलते रिटायर्ड हर्ट होना पड़ा। भारतीय कप्तान बिशन सिंह बेदी और चंद्रशेखर ने बैटिंग न करने का फैसला लिया और पारी वहीं घोषित कर दी। वेस्टइंडीज की रणनीति साफ थी खिलाड़ियों को आउट नहीं, बल्कि डराकर बाहर करना है।
भारतीय बल्लेबाजों ने मैदान पर उतरने से किया इनकार
वहीं जब भारत दूसरी पारी में बैटिंग करने उतरा तो टीम पहले ही 5 विकेट गंवा चुकी थी और सिर्फ 12 रन की बढ़त थी। लेकिन हालत इतनी खराब थी कि न तो रिटायर्ड हर्ट खिलाड़ी वापस लौटे, न ही कप्तान बेदी, गुंडप्पा विश्वनाथ और चंद्रशेखर ने बैटिंग करने की हिम्मत दिखाई। माइकल होल्डिंग ने दूसरी पारी में भी 3 विकेट लेकर कहर बरपाया। उनके साथ राफीक जुमादीन और डेनियल ने भी घातक गेंदबाजी की। भारत के 5 बल्लेबाज एब्सेंट हर्ट करार दिए गए और टीम ऑलआउट मान ली गई। वेस्टइंडीज ने महज 13 रन का लक्ष्य सिर्फ 1.5 ओवर में हासिल कर मैच और सीरीज अपने नाम कर ली।
वेस्टइंडीज के इस गेंदबाजी आक्रमण ने रच दिया इतिहास
दरअसल वेस्टइंडीज की गेंदबाजी यूनिट में उस वक्त माइकल होल्डिंग, व्येन डेनियल, बर्नार्ड जूलियन, वेनबर्न होल्डर और राफीक जुमादीन शामिल थे। पहली पारी में होल्डिंग ने 4 विकेट और डेनियल ने 2 विकेट लिए, जबकि दूसरी पारी में होल्डिंग और जुमादीन ने मिलकर 5 विकेट झटके। उनका मकसद केवल आउट करना नहीं, बल्कि डर पैदा करना था। टीम इंडिया के खिलाड़ियों का मैदान पर न उतरना इस बात का सबूत है कि वेस्टइंडीज की रणनीति ने अपना असर दिखाया।





