स्पेस से कैसे होती है वीडियो कॉल? क्या वहां भी कोई नेटवर्क है? जानिए पूरी जानकारी

अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला की पीएम मोदी से वीडियो कॉल के बाद लोगों के मन में सवाल उठ रहा है बिना मोबाइल नेटवर्क, सिग्नल और टावर के स्पेस स्टेशन से धरती तक बात कैसे होती है? दरअसल, इसके पीछे हाईटेक सिस्टम, रिले सैटेलाइट और रेडियो वेव तकनीक का कमाल है, जो बेहद एडवांस्ड और सटीक तरीके से काम करता है।

इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) धरती से करीब 400 किलोमीटर ऊपर हर 90 मिनट में एक चक्कर लगाता है। वहां पर न कोई मोबाइल नेटवर्क होता है और न ही मोबाइल टावर, फिर भी वहां से वीडियो कॉल संभव होती है। इसका राज है NASA का खास सिस्टम स्पेस कम्युनिकेशन एंड नेविगेशन (SCaN)। यही सिस्टम सुनिश्चित करता है कि अंतरिक्ष में मौजूद एस्ट्रोनॉट धरती पर मौजूद मिशन कंट्रोल से हर वक्त जुड़े रहें।

दरअसल इसका काम सिर्फ आवाज और वीडियो भेजना नहीं, बल्कि रियल टाइम डेटा, लोकेशन, और रिसर्च से जुड़ी जानकारी भी भेजना है। इस पूरे सिस्टम के जरिए न सिर्फ वैज्ञानिकों से बातचीत होती है, बल्कि मिशन की सुरक्षा और नियंत्रण भी सुनिश्चित किया जाता है।

स्पेस स्टेशन कम्युनिकेशन नेटवर्क कैसे करता है काम?

NASA ने दुनिया के अलग-अलग कोनों में बड़े-बड़े एंटीना लगाए हैं, जो ISS और ग्राउंड स्टेशन के बीच ‘ब्रिज’ का काम करते हैं। इन्हें इस तरह सेट किया गया है कि जब भी स्पेस स्टेशन धरती के ऊपर से गुजरता है, इन एंटीना से उसका संपर्क बनता रहे। इन एंटीना की ऊंचाई लगभग 230 फीट तक होती है और ये बेहद हाई फ्रीक्वेंसी पर काम करते हैं। यही वजह है कि इनके जरिए 200 करोड़ मील दूर तक भी सिग्नल भेजे और रिसीव किए जा सकते हैं। इसके अलावा NASA के पास TDRS (Tracking and Data Relay Satellite) नाम के कई सैटेलाइट हैं जो स्पेस स्टेशन से सिग्नल लेकर पहले धरती के इन ग्राउंड स्टेशन तक पहुंचाते हैं। फिर वहां से इंटरनेट, ऑप्टिकल फाइबर और रेडियो वेव की मदद से मैसेज भेजा जाता है। यही प्रक्रिया दो तरफा होती है यानी धरती से स्पेस में और स्पेस से धरती पर।

कौन सी तकनीक इस्तेमाल करता है NASA?

दरअसल फिलहाल NASA स्पेस से कम्युनिकेशन के लिए मुख्य रूप से रेडियो वेव का इस्तेमाल करता है। यह तकनीक सालों से काम आ रही है और अभी तक सबसे भरोसेमंद मानी जाती है। लेकिन अब NASA लेजर कम्युनिकेशन की दिशा में तेजी से काम कर रहा है। लेजर तकनीक रेडियो वेव के मुकाबले कई गुना ज्यादा स्पीड से डेटा ट्रांसफर कर सकती है। आने वाले समय में इसकी मदद से स्पेस से हाई क्वालिटी वीडियो, इमेज और बड़ी-बड़ी फाइलें भी पलक झपकते ही भेजी जा सकेंगी। NASA का LCRD (Laser Communications Relay Demonstration) इसी दिशा में उठाया गया कदम है। ये सिस्टम भविष्य में इंटरप्लैनेटरी कम्युनिकेशन यानी मंगल या चंद्रमा जैसे मिशनों के लिए बेहद अहम साबित हो सकता है।


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Rishabh Namdev

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मैंने श्री वैष्णव विद्यापीठ विश्वविद्यालय इंदौर से जनसंचार एवं पत्रकारिता में स्नातक की पढ़ाई पूरी की है। मैं पत्रकारिता में आने वाले समय में अच्छे प्रदर्शन और कार्य अनुभव की आशा कर रहा हूं। मैंने अपने जीवन में काम करते हुए देश के निचले स्तर को गहराई से जाना है। जिसके चलते मैं एक सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार बनने की इच्छा रखता हूं।

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