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Wed, Dec 17, 2025

 सपा से निकाले गए इन विधायकों पर अब हुई ऐसी कार्रवाई, क्या जाएगी इनकी विधायकी?  जानें क्या है पूरा मामला

Written by:Deepak Kumar
Published:
 सपा से निकाले गए इन विधायकों पर अब हुई ऐसी कार्रवाई, क्या जाएगी इनकी विधायकी?  जानें क्या है पूरा मामला

उत्तर प्रदेश की राजनीति में शुक्रवार को एक बड़ा घटनाक्रम सामने आया है। समाजवादी पार्टी (सपा) के तीन प्रमुख विधायकों – राकेश प्रताप सिंह, अभय सिंह और मनोज पांडेय को विधानसभा अध्यक्ष ने असंबद्ध (Unattached) सदस्य घोषित कर दिया है। इसका मतलब यह है कि अब ये तीनों विधायक सदन में किसी भी राजनीतिक दल से जुड़े हुए नहीं माने जाएंगे।

क्यों हुई यह कार्रवाई?

यह मामला पिछले साल हुए राज्यसभा चुनाव से जुड़ा है। उस चुनाव में सपा ने अपने सभी विधायकों को निर्देश दिया था कि वे पार्टी उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान करें। लेकिन राकेश प्रताप सिंह, अभय सिंह और मनोज पांडेय ने पार्टी लाइन का उल्लंघन करते हुए भाजपा उम्मीदवार संजय सेठ को वोट दिया था। यह खुला क्रॉस वोटिंग का मामला था, जिसने भाजपा उम्मीदवार की जीत को आसान बना दिया।

इस घटना के बाद समाजवादी पार्टी ने इन तीनों विधायकों के खिलाफ कार्रवाई की तैयारी शुरू कर दी थी। पहले इन्हें पार्टी से निलंबित किया गया और फिर निकाल दिया गया। साथ ही, सपा ने विधानसभा अध्यक्ष से इन्हें सदन में असंबद्ध घोषित करने की मांग की थी।

विधानसभा अध्यक्ष ने लिया फैसला

लंबी जांच और प्रक्रिया के बाद, अब विधानसभा अध्यक्ष ने इन तीनों विधायकों को असंबद्ध सदस्य घोषित कर दिया है। इसका मतलब यह है कि ये विधायक अब सदन में न तो सपा का हिस्सा माने जाएंगे और न ही किसी अन्य दल का। इन्हें स्वतंत्र विधायक के रूप में माना जाएगा, लेकिन किसी पार्टी के अधिकार या सुविधाओं का लाभ नहीं मिल सकेगा।

क्या है आगे की सियासी तस्वीर?

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, इस घटनाक्रम से यूपी की राजनीति में एक बड़ा संदेश गया है कि पार्टी विरोधी गतिविधियों को अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यह कदम आने वाले विधानसभा सत्रों और 2027 चुनाव की तैयारी में भी अहम भूमिका निभा सकता है। वहीं यह भी अटकलें लगाई जा रही हैं कि ये तीनों विधायक जल्द ही भाजपा का दामन थाम सकते हैं, क्योंकि उन्होंने भाजपा को राज्यसभा में समर्थन देकर पहले ही संकेत दे दिए हैं। इस फैसले के बाद समाजवादी पार्टी को कुछ राहत जरूर मिली है, लेकिन यह मामला यह भी दिखाता है कि दल-बदल और राजनीतिक वफादारी का संकट अब भी खत्म नहीं हुआ है।