बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। कोर्ट ने मंदिर की व्यवस्थाओं के लिए एक अंतरिम समिति गठित करने का प्रस्ताव रखा है। इस पर यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने सहमति जताई है, लेकिन साथ ही एक अहम शर्त भी रख दी है।
सरकार का कहना है कि समिति का नेतृत्व किसी ऐसे व्यक्ति को ही सौंपा जाए जो आस्था से सनातनी हिंदू हो। यानी किसी अन्य धर्म या पंथ को मानने वाले व्यक्ति को समिति का मुखिया न बनाया जाए। यह समिति तब तक मंदिर का संचालन देखेगी, जब तक इलाहाबाद हाईकोर्ट बांके बिहारी कॉरिडोर को लेकर यूपी सरकार के लाए गए अध्यादेश पर अंतिम फैसला नहीं ले लेता।
कोर्ट में क्या हुआ?
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जयमाला बागची की बेंच के सामने यूपी सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज पेश हुए। उन्होंने कहा कि सरकार को समिति बनाने पर कोई ऐतराज नहीं है। कोर्ट की मंशा है कि हाईकोर्ट के किसी रिटायर्ड जज को इसका प्रमुख बनाया जाए।
इस पर यूपी सरकार ने कहा कि वे कोर्ट की बात से सहमत हैं, लेकिन समिति का मुखिया वही व्यक्ति होना चाहिए, जो परंपरा, श्रद्धा और आस्था से सनातनी हिंदू हो।
समिति को क्या ज़िम्मेदारी मिलेगी?
इस अंतरिम समिति को बांके बिहारी मंदिर के प्रशासन, फंड मैनेजमेंट और विकास कार्यों को देखने की ज़िम्मेदारी दी जाएगी। सरकार की दलील है कि मंदिर की पवित्रता और गरिमा बनाए रखने के लिए उसका नेतृत्व उसी के अनुरूप होना चाहिए।
क्या है पूरा विवाद?
योगी सरकार वृंदावन में बांके बिहारी कॉरिडोर बनाना चाहती है। इसके लिए एक अध्यादेश लाया गया है, जिसमें खर्च का एक हिस्सा मंदिर ट्रस्ट से लेने की बात भी कही गई है। ट्रस्ट ने इस अध्यादेश को कोर्ट में चुनौती दी है। सरकार की दलील है कि काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की तर्ज पर ही यह योजना बनाई गई है। अब जब तक हाईकोर्ट इस पर फैसला नहीं देता, सुप्रीम कोर्ट ने एक अंतरिम समिति बनाकर कामकाज देखने की बात कही है।





