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Thu, Dec 18, 2025

मालेगांव ब्लास्ट केस में सभी आरोपी बरी, सीएम योगी ने फैसले को बताया ‘सत्यमेव जयते की उद्घोषणा’, कांग्रेस पर बोला हमला

Written by:Saurabh Singh
Published:
मालेगांव विस्फोट मामले में फैसला सुनाते हुए विशेष न्यायाधीश ए.के. लाहोटी ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपी के खिलाफ पर्याप्त सबूत पेश नहीं कर सका। इस आधार पर साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, कर्नल श्रीकांत पुरोहित, रमेश उपाध्याय, समीर कुलकर्णी और सुधाकर द्विवेदी सहित सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया।
मालेगांव ब्लास्ट केस में सभी आरोपी बरी, सीएम योगी ने फैसले को बताया ‘सत्यमेव जयते की उद्घोषणा’, कांग्रेस पर बोला हमला

मालेगांव बम धमाका केस में 18 साल बाद बहुप्रतीक्षित फैसला आ गया है। मुंबई की स्पेशल एनआईए कोर्ट ने सोमवार को सभी आरोपियों को बरी कर दिया। फैसले के बाद राजनीतिक प्रतिक्रिया भी आने लगी है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कोर्ट के इस निर्णय को ‘सत्यमेव जयते’ की सजीव उद्घोषणा बताया और कांग्रेस पर तीखा हमला बोला।

कोर्ट ने क्या कहा?

मालेगांव विस्फोट मामले में फैसला सुनाते हुए विशेष न्यायाधीश ए.के. लाहोटी ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपी के खिलाफ पर्याप्त सबूत पेश नहीं कर सका। इस आधार पर साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, कर्नल श्रीकांत पुरोहित, रमेश उपाध्याय, समीर कुलकर्णी और सुधाकर द्विवेदी सहित सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया। जज लाहोटी ने यह भी टिप्पणी की कि “आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता।

सीएम योगी आदित्यनाथ का बयान

कोर्ट के फैसले के बाद सीएम योगी आदित्यनाथ ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने लिखा,

“मालेगांव विस्फोट प्रकरण में सभी आरोपियों का निर्दोष सिद्ध होना ‘सत्यमेव जयते’ की सजीव उद्घोषणा है। यह निर्णय कांग्रेस के भारत विरोधी, न्याय विरोधी और सनातन विरोधी चरित्र को एक बार फिर उजागर करता है।”


उन्होंने आगे कहा कि,

“कांग्रेस ने ‘भगवा आतंकवाद’ जैसा मिथ्या शब्द गढ़कर करोड़ों सनातन आस्थावानों, साधु-संतों और राष्ट्रसेवकों की छवि को कलंकित करने का अपराध किया है। कांग्रेस को अपने इस अक्षम्य कुकृत्य के लिए देश से सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए।”

18 साल पुराना मामला

मालेगांव धमाका 29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव में हुआ था। इस विस्फोट में 6 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 100 से अधिक लोग घायल हुए थे। शुरुआत में इसकी जांच महाराष्ट्र एटीएस ने की थी, बाद में यह केस एनआईए को ट्रांसफर किया गया था। अब कोर्ट ने सभी को यह कहते हुए बरी कर दिया कि उनके खिलाफ ठोस और भरोसेमंद साक्ष्य पेश नहीं किए जा सके।