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Thu, Dec 18, 2025

अब सपा नेता ने उठाई बलिया का नाम बदलने की मांग, जानिए क्या है वजह

Written by:Saurabh Singh
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यह विवाद यूपी में नाम बदलने की राजनीति को और गर्माने वाला है। जहां एक ओर बीजेपी और सपा के नेता इस मुद्दे पर अपनी-अपनी बात रख रहे हैं, वहीं जनता के बीच भी इस पर चर्चा तेज हो गई है।
अब सपा नेता ने उठाई बलिया का नाम बदलने की मांग, जानिए क्या है वजह

उत्तर प्रदेश में नाम बदलने की राजनीति एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार समाजवादी पार्टी (सपा) के बलिया से सांसद सनातन पांडे ने बलिया जिले का नाम बदलने की मांग उठाकर चर्चा बटोरी है। उन्होंने सुझाव दिया कि बलिया का नाम स्वतंत्रता संग्राम के नायक शहीद मंगल पांडे के नाम पर रखा जाए। इसके अलावा, उन्होंने महर्षि भृगु के नाम को भी एक विकल्प के रूप में प्रस्तावित किया है। सनातन पांडे ने यह भी कहा कि गाजीपुर जिले का नाम भगवान परशुराम के पिता महर्षि जमदगनी के नाम पर रखा जा सकता है।

इस मांग ने यूपी की राजनीति में नया मोड़ ला दिया है, क्योंकि नाम बदलने का मुद्दा अक्सर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ जोड़ा जाता रहा है। सनातन पांडे ने अपनी मांग को बलिया की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान से जोड़ते हुए कहा कि यह कदम क्षेत्र के गौरवशाली इतिहास को सम्मान देने वाला होगा। हालांकि, उन्होंने इस मुद्दे को राजनीति से प्रेरित नहीं बताया, बल्कि इसे स्थानीय लोगों की भावनाओं से जुड़ा हुआ करार दिया।

नाम बदलने की मांग, राजनीतिक लाभ के लिए नहीं

इससे पहले, बलिया की बांसडीह विधानसभा सीट से बीजेपी विधायक केतकी सिंह ने भी गाजीपुर, मऊ और आजमगढ़ जिलों के नाम बदलने की मांग उठाई थी। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए सनातन पांडे ने तंज कसते हुए कहा, अगर केतकी सिंह का मन साफ है, तो सब ठीक है, लेकिन अगर मन साफ नहीं है, तो कुछ भी बढ़िया नहीं है। उन्होंने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा कि नाम बदलने की मांग को राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।

बीजेपी और सपा नेता की अपनी बात

यह विवाद यूपी में नाम बदलने की राजनीति को और गर्माने वाला है। जहां एक ओर बीजेपी और सपा के नेता इस मुद्दे पर अपनी-अपनी बात रख रहे हैं, वहीं जनता के बीच भी इस पर चर्चा तेज हो गई है। कुछ लोग इसे सांस्कृतिक सम्मान का मुद्दा मानते हैं, तो कुछ इसे राजनीतिक नौटंकी करार दे रहे हैं। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह मांग कितनी गंभीरता से ली जाती है और क्या यह प्रस्ताव हकीकत में बदल पाता है।