वृंदावन के प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन को लेकर योगी सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। शीर्ष अदालत ने मंदिर के प्रशासनिक नियंत्रण और समिति गठन से जुड़े उत्तर प्रदेश श्री बांके बिहारी जी मंदिर न्यास अध्यादेश 2025 के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने साफ कहा कि यह अध्यादेश तब तक लागू नहीं होगा, जब तक इलाहाबाद हाईकोर्ट इसकी संवैधानिक वैधता पर फैसला नहीं देता।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने शुक्रवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि मंदिर के दैनिक संचालन के लिए एक उच्चस्तरीय समिति बनाई जाएगी। इसकी अध्यक्षता इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश करेंगे, जिसमें स्थानीय प्रशासनिक अधिकारी और गोस्वामी समुदाय के सदस्य भी होंगे। समिति को मंदिर आने वाले लाखों श्रद्धालुओं के लिए बुनियादी सुविधाओं में सुधार और खरीद सुनिश्चित करने का अधिकार होगा।
कोर्ट ने 15 मई के अपने आदेश में भी संशोधन करने की बात कही, जिसमें मंदिर के धन से ‘होल्डिंग एरिया’ विकसित करने के लिए पांच एकड़ भूमि खरीद की अनुमति दी गई थी। अब यह भूमि देवता या ट्रस्ट के नाम पर अधिग्रहित की जाएगी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी
इससे पहले 6 अगस्त को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के इस कदम को ‘पाप’ करार दिया था, जिसमें वैधानिक ट्रस्ट बनाकर मंदिर की व्यवस्था अपने हाथ में लेने की कोशिश की जा रही थी।
राज्य सरकार का पक्ष
राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि अध्यादेश का मकसद बांके बिहारी मंदिर की बेहतर प्रशासनिक व्यवस्था सुनिश्चित करना है। सरकार ने दैनिक मामलों के प्रबंधन के लिए हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में समिति गठित करने के सुझाव का भी समर्थन किया। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के ‘गुप्त तरीके से’ अदालत का दरवाजा खटखटाने के रवैये पर नाराजगी जताई और अध्यादेश लाने की जल्दबाजी पर सवाल उठाए।





