Tue, Dec 23, 2025

सपा के इन ‘बागी’ विधायकों पर यूपी विधानसभा ने लिया एक्शन, क्या अब नहीं रहेंगे विधायक?

Written by:Deepak Kumar
Published:
उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारों से इस वक्त की एक बहुत बड़ी खबर सामने आई है। समाजवादी पार्टी के तीन प्रमुख विधायक, राकेश प्रताप सिंह, अभय सिंह और मनोज पांडेय, अब विधानसभा में 'असंबद्ध' (unattached/unaffiliated) घोषित कर दिए गए हैं।
सपा के इन ‘बागी’ विधायकों पर यूपी विधानसभा ने लिया एक्शन, क्या अब नहीं रहेंगे विधायक?

उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारों से इस वक्त की एक बहुत बड़ी खबर सामने आई है। समाजवादी पार्टी के तीन प्रमुख विधायक, राकेश प्रताप सिंह, अभय सिंह और मनोज पांडेय, अब विधानसभा में ‘असंबद्ध’ (unattached/unaffiliated) घोषित कर दिए गए हैं। यह फैसला यूपी विधानसभा ने लिया है, जिससे राज्य की राजनीति में हलचल तेज हो गई है।

क्यों हुई यह कार्रवाई?

इन तीनों विधायकों के खिलाफ यह बड़ी कार्रवाई इसलिए की गई है, क्योंकि पिछले साल हुए राज्यसभा चुनाव के दौरान इन्होंने अपनी पार्टी समाजवादी पार्टी की लाइन के खिलाफ जाकर क्रॉस वोटिंग की थी। यानी, उन्होंने अपनी पार्टी के उम्मीदवार को वोट न देकर किसी और दल, खासकर बीजेपी के प्रत्याशी को वोट दिया था। इनकी इसी क्रॉस वोटिंग के कारण भाजपा प्रत्याशी संजय सेठ की जीत सुनिश्चित हो पाई थी। समाजवादी पार्टी ने इस घटना के बाद हाल ही में इन तीनों विधायकों को पार्टी से निष्कासित (expelled) भी कर दिया था। इस नई घोषणा के बाद अब ये तीनों विधायक सदन में किसी भी राजनीतिक दल से जुड़े हुए नहीं माने जाएंगे।

क्या है ‘असंबद्ध’ होने का मतलब?

यहां सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि ‘असंबद्ध’ घोषित होने का क्या मतलब है और क्या इससे इन विधायकों की विधायकी चली जाएगी? इसका सीधा जवाब है कि इन विधायकों की विधानसभा सदस्यता अभी समाप्त नहीं हुई है।

‘असंबद्ध’ घोषित होने का अर्थ यह है कि वे अब समाजवादी पार्टी के सदस्य के तौर पर विधानसभा में नहीं बैठेंगे। उन्हें विधानसभा में ‘असंबद्ध विधायक’ (unattached MLA) के तौर पर एक अलग सीट आवंटित की जाएगी, लेकिन वे सपा के प्रतिनिधि या सदस्य नहीं माने जाएंगे। वे अभी भी विधायक हैं, लेकिन किसी भी पार्टी से जुड़े नहीं हैं। उनका वोट अभी भी वैध रहेगा, लेकिन वे पार्टी के व्हिप (Whip) से बंधे नहीं होंगे।

विधायकी कैसे जाती है (दल-बदल विरोधी कानून)?

भारत में किसी विधायक की विधायकी जाने का एक बहुत बड़ा कारण दल-बदल विरोधी कानून (Anti-defection Law) है, जिसे संविधान की दसवीं अनुसूची (Tenth Schedule) में शामिल किया गया है। इस कानून का मुख्य उद्देश्य राजनीतिक अस्थिरता को रोकना और विधायकों को एक पार्टी से दूसरी पार्टी में बार-बार दल-बदल करने से रोकना है।

इस कानून के तहत, किसी विधायक की सदस्यता तब समाप्त हो सकती है जब:

स्वैच्छिक रूप से पार्टी छोड़ना: यदि कोई विधायक अपनी मर्जी से उस राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ देता है, जिसके टिकट पर वह चुना गया था।

पार्टी के व्हिप का उल्लंघन: यदि कोई विधायक सदन में अपनी पार्टी के निर्देशों (व्हिप) के खिलाफ वोट करता है, या वोटिंग से अनुपस्थित रहता है, और पार्टी ने उसे 15 दिनों के भीतर माफ नहीं किया हो।

निर्दलीय विधायक का पार्टी में शामिल होना: यदि कोई निर्दलीय चुना गया विधायक चुनाव के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।

मनोनीत सदस्य का पार्टी में शामिल होना: यदि कोई मनोनीत सदस्य (Nominated Member) शपथ लेने के छह महीने बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।

इन तीन विधायकों के मामले में, उन्होंने पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर क्रॉस वोटिंग की है और उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है। ऐसे में, उनकी विधायकी पर दल-बदल विरोधी कानून के तहत फैसला विधानसभा अध्यक्ष के हाथ में होता है। यह देखना होगा कि विधानसभा अध्यक्ष इस मामले में आगे क्या निर्णय लेते हैं। फिलहाल, वे ‘असंबद्ध’ विधायक के तौर पर सदन में बने रहेंगे।