भारत के उत्तर प्रदेश में स्थित प्यार की निशानी ताजमहल का इतिहास जितना पुराना है, उतना ही अधिक रोचक भी है। यमुना नदी के किनारे बसे इस भव्य मकबरे को देखने के लिए विश्व भर के पर्यटक पहुंचते हैं। चांदनी जैसी चमक, आकर्षक वास्तुकला और इसकी बनावट लोगों को पसंद आती है। साल 1983 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर का दर्जा दे दिया है, जो कि दुनिया के सात अजूबे में से एक है। 42 एकड़ जमीन में फैले इस धरोहर की देखरेख भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा किया जाता है।
आगरा में स्थित ताजमहल के बारे में बचपन से ही किताबों में पढ़ाया जाता है, जिसे शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में बनवाया था। इसे बनाने में कई वर्ष लगे थे।

कई कमरें सालों से हैं बंद
यहां बने कई कमरे ऐसे हैं, जो सालों से बंद पड़े हैं। यह केवल मेंटेनेंस के लिए खोला जाता है। आखरी बार इन्हें 1934 में मरम्मत के लिए खोला गया था। हालांकि, यहां टूरिस्ट को जाने नहीं दिया जाता। वह केवल ताजमहल को ऊपर-ऊपर से देख सकते हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो पूर्णिमा के दिन यहां स्पेशली ताजमहल की सुंदरता को देखने के लिए आते हैं। इस रात यहां की खूबसूरती अलग लेवल की होती है।
एंट्री के नियम
बता दें कि ताजमहल को सुबह 6:00 बजे पर्यटकों के लिए खोल दिया जाता है। इसके सभी द्वारा शाम 6:30 बजे बंद कर दिए जाते हैं। इस समय तक यहां मौजूद कर्मियों द्वारा जगह को खाली करवा दिया जाता है, क्योंकि शाम 6:30 बजे के बाद यहां प्रवेश पर प्रतिबंध लगा हुआ है। वहीं, ताजमहल में एंट्री करने से पहले टूरिस्ट को यहां बनाए गए कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है। जिनमें से एक शू कवर भी है।
जानें क्यों किया गया अनिवार्य
दरअसल, जब ताजमहल में एंट्री होती है, तो जूते में शू कवर लगाना होता है। इसके पीछे बड़ी वजह ताजमहल को धूल से बचाना होता है। यह नियम इसलिए लागू किया गया है, ताकि जूते का साथ आने वाली धूल अंदर ना जा सके। बता दें कि यह नियम ताजमहल में संगमरमर की चमक को बरकरार रखने के लिए अनिवार्य किया गया है। साल 2019 में भारतीय पुरातत्व सर्वक्षण द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पेश किए ताजमहल की साइट मैनेजमेंट प्लान में शू कवर को अनिवार्य करने की बात कही थी। हालांकि, यह नियम केवल मकबरे के लिए अनिवार्य किया गया है। इसके अलावा, आप गार्डन सहित आसपास के इलाकों में बिना शू कवर के घूम सकते हैं।