उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोस्वामी तुलसीदास की 528वीं जयंती पर उनकी जन्मस्थली राजापुर में कई विकास योजनाओं का एलान किया। गुरुवार को वे यमुना नदी के किनारे स्थित राजापुर पहुंचे और यहां रिवर फ्रंट के निर्माण व राजापुर-कर्वी मार्ग के दोहरीकरण की घोषणा की। उन्होंने कहा कि ये योजनाएं तुलसीदास की जन्मस्थली को विश्व स्तर पर नई पहचान दिलाएंगी और दर्शनार्थियों को बेहतर सुविधाएं मिलेंगी।
मुख्यमंत्री ने सबसे पहले तुलसी जन्म कुटीर पहुंचकर गोस्वामी तुलसीदास की प्रतिमा की पूजा-अर्चना की। यहां उन्होंने संत द्वारा लिखित श्रीरामचरितमानस के हस्तलिखित पन्नों के दर्शन भी किए। उन्होंने कहा,
“राजापुर को तुलसी जैसी निधि प्राप्त है। श्रीरामचरितमानस ने इस जगह को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाई है।”
उन्होंने बताया कि यमुना किनारे हो रहे कटान को रोकने और दर्शनार्थियों को बेहतर यातायात सुविधा देने के लिए जल शक्ति मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह और चित्रकूट के प्रभारी मंत्री मन्नू कोरी को साथ लाया गया है, ताकि रिवर फ्रंट योजना को तेज़ी से आगे बढ़ाया जा सके।
तुलसी साहित्य समागम में हुए शामिल
इसके बाद सीएम योगी तुलसी रिजॉर्ट पहुंचे, जहां संत मोरारी बापू द्वारा आयोजित तुलसी साहित्य समागम में भाग लिया। यहां उन्होंने जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य सहित कई साधु-संतों और धर्माचार्यों से मुलाकात की। उन्होंने समागम में शामिल विद्वानों और कथाकारों का माल्यार्पण कर सम्मानित भी किया।
‘अकबर नहीं, श्रीराम के हुए तुलसी’
समागम को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने गोस्वामी तुलसीदास के जीवन का प्रेरणादायक प्रसंग साझा करते हुए कहा कि जब मुगल बादशाह अकबर ने उन्हें अपने दरबार का रत्न बनाने का प्रस्ताव भेजा, तो तुलसीदास ने साफ कह दिया – मेरे एक ही बादशाह हैं, भगवान श्रीराम। मैं केवल उनके दरबार का सेवक हूं। उन्होंने कहा कि तुलसीदास ने कठिन दौर में भी अपनी आस्था और संस्कृति से समझौता नहीं किया।
मुख्यमंत्री ने संत समाज से आह्वान किया कि वे अपने मतभेद भुलाकर समाज और राष्ट्रहित में एकजुट होकर कार्य करें। उन्होंने कहा कि आज के साधु समाज में विचारधाराएं बंटी हुई हैं, जबकि तुलसीदास जैसे संतों की परंपरा एकता की प्रेरणा देती है।
वाल्मीकि और नानाजी देशमुख को किया नमन
सीएम योगी ने इस दौरान कृषि विज्ञान केंद्र, गनीवा में तुलसीदास जी की नई प्रतिमा का अनावरण किया। उन्होंने नानाजी देशमुख की कर्मभूमि, तुलसीदास की जन्मस्थली और महर्षि वाल्मीकि की लालापुर भूमि को नमन करते हुए इस पावन धरा को संस्कृति और समर्पण का प्रतीक बताया।





