MP Breaking News

Welcome

Fri, Dec 5, 2025

‘संस्कृत’ भाषा की समृद्धि और विकास के लिए उच्चस्तरीय आयोग का होगा गठन, CM धामी का बड़ा ऐलान

Written by:Shyam Dwivedi
हरिद्वार में सोमवार को अंतर्राष्ट्रीय संस्कृत सम्मेलन में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने संस्कृत भाषा की समृद्धि और विकास के लिए एक उच्चस्तरीय आयोग के गठन की घोषणा कर दी है। सीएम ने कहा कि नई शिक्षा नीति में संस्कृत को आधुनिक और व्यवहारिक भाषा के रूप में स्थापित करने पर विशेष बल दिया गया है।
‘संस्कृत’ भाषा की समृद्धि और विकास के लिए उच्चस्तरीय आयोग का होगा गठन, CM धामी का बड़ा ऐलान

उत्तराखंड के हरिद्वार में सोमवार को अंतर्राष्ट्रीय संस्कृत सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें मुख्य अ​तिथि के तौर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी शामिल हुए। इस खास मौके पर सीएम धामी ने बड़ा ऐलान किया है। उन्होंने संस्कृत भाषा की समृद्धि और विकास के लिए एक उच्चस्तरीय आयोग के गठन की घोषणा कर दी है।

मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा: वैश्विक ज्ञान के विकास में संस्कृत का योगदान” जैसे महत्वपूर्ण विषय पर आयोजित यह कॉन्फ्रेंस भारतीय सभ्यता की शानदार जड़ों को दुनिया के मंच पर मजबूती से पेश करती है। साथ ही कहा कि इस दो दिवसीय सम्मेलन में भारत सहित विभिन्न देशों के विद्वानों द्वारा संस्कृत की समृद्ध ज्ञान-परंपरा पर गहन विचार-विमर्श किया जाएगा, जो एक प्रेरणादायी पहल है।

सीएम ने कहा कि नई शिक्षा नीति में संस्कृत को आधुनिक और व्यवहारिक भाषा के रूप में स्थापित करने पर विशेष बल दिया गया है। ई-संस्कृत शिक्षण प्लेटफॉर्म, मोबाइल एप्स, ऑनलाइन साहित्य उपलब्धता जैसी पहलों से संस्कृत को नई पीढ़ी तक सरल रूप में पहुंचाया जा रहा है। संस्कृत भाषा अनादि और अनंत है और माना जाता है कि संस्कृत का आविष्कार देवताओं ने किया, इसीलिए इसे देववाणी भी कहा जाता है।

संस्कृत को समृद्ध करना हमारा कर्तव्य- सीएम धामी

मुख्यमंत्री ने उल्लेख किया कि विश्व की अनेकों भाषाओं की जड़ें संस्कृत से जुड़ी हुई हैं। वेद, पुराण, उपनिषद, आयुर्वेद, योग, दर्शन, गणित, साहित्य, विज्ञान और खगोलशास्त्र जैसे सभी प्राचीन ग्रंथ संस्कृत में रचे गए, जिसने भारत की वैचारिक धरोहर को समृद्ध किया। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड की पावन भूमि, जिसने वेदों और ऋषि-मुनियों के ज्ञान को जन्म दिया, वहाँ संस्कृत को समृद्ध करना हमारा कर्तव्य है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि एक दिन संस्कृत केवल पूजा-पाठ की भाषा न रहकर आम बोलचाल की भाषा के रूप में भी स्थापित होगी।