समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ से बड़ी राहत मिली है। जनेश्वर मिश्रा ट्रस्ट के कार्यालय के रूप में आवंटित बंगला नंबर 7, विक्रमादित्य मार्ग को खाली कराने के योगी सरकार के आदेश पर हाईकोर्ट ने अस्थायी रोक लगा दी है। अदालत ने इस मामले में यूपी सरकार से जवाब भी मांगा है।
किराया क्यों ले रहे हैं?
हाईकोर्ट की खंडपीठ comprising जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस मनीष कुमार ने सरकार को फटकार लगाते हुए पूछा कि अगर बंगले का आवंटन जनवरी 2022 में ही खत्म हो गया था, तो फिर अब तक किराया क्यों वसूला जा रहा है? अदालत ने राज्य सरकार को पूरे मामले में स्पष्टीकरण देने के निर्देश दिए हैं।
क्या है पूरा मामला?
जनेश्वर मिश्रा ट्रस्ट को यह बंगला 30 जनवरी 2017 को 72 हजार रुपए महीने के किराए पर आवंटित किया गया था. आवंटन की शुरुआत में समय सीमा 5 साल तय की गई थी. जिसे बाद में संपत्ति विभाग ने अपने विनियमों के तहत बढ़ाकर 10 साल कर दिया था. इसी के बाद योगी आदित्यनाथ यूपी के मुख्यमंत्री बने. तभी साल 2021 में इस ट्रस्ट के कार्यालय आवंटन को लेकर नियम बदल दिया गया. नियम में बदलाव करके यह फैसला हुआ कि आवंटन की समयसीमा 5 साल से अधिक नहीं की जाएगी. इस हिसाब से देखा जाए तो ट्रस्ट के ऑफिस का आवंटन 2 जनवरी 2022 को खत्म हो गया था.
ट्रस्ट ने क्या दावा किया?
ट्रस्ट की ओर से दायर याचिका में बंगले के आवंटन को नियमों के तहत बताते हुए उसे निरस्त करने या खाली कराने की कार्रवाई को चुनौती दी गई थी. ट्रस्ट की तरफ से यह भी दावा किया गया कि यूपी सरकार का ये नियम गलत है और सरकार की मंशा ट्रस्ट से उसका ऑफिस लेने की है. इसी को लेकर हाई कोर्ट ने यूपी सरकार से पूछा कि जब आवंटन 2022 में खत्म हो गया तो किराया क्यों लेते रहे? अब अदालत ने सरकार को इस मामले में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है.
यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जनेश्वर मिश्र ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं. उनके करीबी नेता राजेन्द्र चौधरी इसके सचिव की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. साथ ही अखिलेश के चचेरे भाई और सांसद धर्मेन्द्र यादव भी इस ट्रस्ट के मेंबर हैं.
क्या है असर?
हाईकोर्ट के इस अंतरिम आदेश के बाद फिलहाल ट्रस्ट को बंगला खाली करने की ज़रूरत नहीं है। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई तक स्थिति यथावत रखने के निर्देश दिए हैं। सरकार को इस संबंध में अपना जवाब दाखिल करना होगा। यह मामला अब राजनीतिक रूप से भी अहम हो गया है, क्योंकि इसमें सीधे तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी के प्रमुख नेता जुड़े हैं।





