उत्तराखंड में हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव 2025 के नतीजे भाजपा के लिए किसी बड़े राजनीतिक झटके से कम नहीं हैं। राज्य के कई प्रभावशाली बीजेपी विधायकों के परिजन इस चुनाव में हार का सामना कर चुके हैं। खास बात यह रही कि यह हार सिर्फ उम्मीदवारों की नहीं, बल्कि उन परिवारों की राजनीतिक साख और संगठनात्मक पकड़ पर भी सवाल खड़े कर रही है। कांग्रेस समर्थित उम्मीदवारों और कुछ निर्दलीयों ने अप्रत्याशित प्रदर्शन करते हुए भाजपा समर्थित चेहरों को शिकस्त दी है। इस हार के बाद राजनीतिक विश्लेषक इसे 2027 के विधानसभा चुनाव का ट्रेलर मान रहे हैं। वहीं भाजपा में अंदरखाने मंथन और आत्ममंथन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
लैंसडाउन से विधायक की पत्नी को हार
पौड़ी जिले के लैंसडाउन से विधायक और बीजेपी के वरिष्ठ नेता दिलीप रावत की पत्नी नीतू देवी को जिला पंचायत सदस्य पद पर हार का सामना करना पड़ा। नीतू देवी की हार सिर्फ एक व्यक्तिगत चुनावी असफलता नहीं, बल्कि भाजपा के लिए एक रणनीतिक झटका भी मानी जा रही है। दरअसल, नीतू देवी की जीत के बाद उन्हें जिला पंचायत अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाए जाने की योजना थी। लेकिन 411 वोटों से मिली हार ने भाजपा के स्थानीय स्तर पर राजनीतिक संतुलन को डगमग कर दिया है। विपक्ष ने इसे परिवारवाद की हार बताते हुए कहा कि जनता अब चेहरों के पीछे की राजनीतिक नीयत को पहचान चुकी है। स्थानीय मुद्दों पर काम न करने और सत्ताधारी प्रभाव का दुरुपयोग करने का आरोप भी इस सीट पर लगाया गया।
सल्ट और नैनीताल में विधायकों के बेटे हारे
अल्मोड़ा जिले के स्याल्दे ब्लॉक में सल्ट विधायक महेश जीना के बेटे करन जीना को 50 वोटों से हार का सामना करना पड़ा। करन जीना को ब्लॉक प्रमुख का संभावित उम्मीदवार माना जा रहा था, लेकिन उनकी हार ने भाजपा की सांगठनिक पकड़ और रणनीति को कटघरे में खड़ा कर दिया है। नैनीताल जिले में भी बीजेपी को बड़ा झटका लगा। विधायक सरिता आर्या के बेटे को कांग्रेस समर्थित यशपाल आर्य ने 1200 वोटों से हराया। सरिता आर्या 2022 में कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुई थीं और विधायक बनी थीं, लेकिन बेटे की हार ने न केवल उनके व्यक्तिगत राजनीतिक कद को चुनौती दी है, बल्कि पार्टी बदलने के उनके फैसले पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।
अल्मोड़ा-चमोली में बड़े नेताओं की दोहरी पराजय
भैसियाछाना ब्लॉक (अल्मोड़ा) में बीजेपी अनुसूचित जाति मोर्चा के मंडल अध्यक्ष संतोष कुमार राम और उनकी पत्नी पूजा देवी—दोनों को हार झेलनी पड़ी। संतोष को 267 वोटों से सूरज कुमार ने हराया, जबकि पूजा देवी डूंगरलेख सीट पर तीसरे स्थान पर रहीं। यह दोहरी हार दर्शाती है कि बीजेपी का संगठनात्मक तंत्र जमीनी स्तर पर कमजोर होता जा रहा है। चमोली जिले से पूर्व कैबिनेट मंत्री राजेंद्र भंडारी की पत्नी रजनी भंडारी भी चुनाव हार गईं। रानों वार्ड से चुनाव लड़ रहीं रजनी निवर्तमान जिला पंचायत अध्यक्ष थीं, लेकिन इस बार उन्हें चौथा स्थान मिला। यह हार बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का बड़ा नुकसान है, क्योंकि रजनी भंडारी को सत्ता में रहने का अनुभव था और पार्टी ने उन्हें मज़बूत उम्मीदवार के तौर पर उतारा था।
निर्दलीय ने लहराया परचम
नैनीताल जिले की रामड़ी आन सिंह सीट पर बीजेपी समर्थित निवर्तमान जिला पंचायत अध्यक्ष बेला तोलिया को निर्दलीय उम्मीदवार छवि बोरा कांडपाल ने 2000 से अधिक वोटों से हराया। यह सबसे बड़ी हारों में से एक मानी जा रही है। यह पराजय केवल एक सीट पर सत्ता गंवाने की बात नहीं है, बल्कि यह एक संकेत है कि जनता ने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व और उसके प्रत्याशियों को नकारने का निर्णय ले लिया है। छवि बोरा की जीत यह भी दर्शाती है कि निर्दलीय और कांग्रेस समर्थित उम्मीदवारों ने न केवल चुनाव लड़ा, बल्कि भरोसे के साथ जनता तक पहुंचे और भरोसा भी जीता।
2027 के चुनाव से पहले बड़ा अलर्ट
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि उत्तराखंड के पंचायत चुनाव केवल स्थानीय निकाय के लिए नहीं, बल्कि भावी विधानसभा और लोकसभा चुनाव की दिशा तय करने वाले संकेत हैं। भाजपा के नेताओं के परिवारों की हार इस बात का संकेत है कि केवल चेहरा और सत्ता नहीं, अब जनता काम देखना चाहती है। इस चुनाव में मिली पराजय के बाद भाजपा को जमीनी स्तर पर संगठन को फिर से खड़ा करना होगा और भरोसे को दोबारा कायम करना होगा। वहीं कांग्रेस इन नतीजों को आगामी विधानसभा चुनाव में अपने लिए अवसर के तौर पर देख रही है।





