हल्द्वानी के बनभूलपुरा क्षेत्र में रेलवे की भूमि पर हुए अतिक्रमण को लेकर पिछले करीब दो दशकों से जारी विवाद अब सर्वोच्च न्यायालय में अंतिम चरण में पहुंच गया है। आज इस मामला को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की जानी थी पर अब इस मामले में 10 दिसंबर को अहम सुनवाई होगी, जिसका फैसला हल्द्वानी के हजारों निवासियों के भविष्य का निर्धारण करेगा। रेलवे के अनुसार, बनभूलपुरा में लगभग 29 एकड़ भूमि पर करीब 4365 परिवार अतिक्रमण कर निवास कर रहे हैं।
आज की इस संवेदनशील स्थिति को देखते हुए स्थानीय पुलिस और प्रशासन ने व्यापक तैयारियां की गई थीं। पुलिस द्वारा कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए पूरे क्षेत्र में सख्त निगरानी और सुरक्षा बंदोबस्त भी किए गए थे।
लंबा चला कानूनी संघर्ष, पूरा मामला
रेलवे भूमि से अतिक्रमण हटाने का मुद्दा सबसे पहले वर्ष 2007 में सामने आया, जब उत्तराखंड हाईकोर्ट ने इस संबंध में पहला आदेश जारी किया। उस समय प्रशासन ने रेलवे स्टेशन के आसपास से लगभग 2400 वर्गमीटर भूमि को अतिक्रमण मुक्त भी कराया था, लेकिन हदबंदी स्पष्ट न होने के कारण समय के साथ दोबारा अतिक्रमण शुरू हो गया।
याचिकाकर्ता रविशंकर जोशी ने वर्ष 2013 में गौला नदी में अवैध खनन और गौला पुल की क्षति को लेकर हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। इसी सुनवाई के दौरान रेलवे भूमि पर अतिक्रमण का मुद्दा एक बार फिर जोर-शोर से उठा। 9 नवंबर 2016 को हाईकोर्ट ने रेलवे को 10 सप्ताह के भीतर अतिक्रमण हटाने का निर्देश दिया। इसके बाद अतिक्रमणकारियों और प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट में दावा किया कि विवादित भूमि राज्य सरकार की नजूल भूमि है, लेकिन 10 जनवरी 2017 को हाईकोर्ट ने इस दावे को खारिज कर दिया।
“बनभूलपुरा और गफूरबस्ती क्षेत्र में रेलवे भूमि से अतिक्रमण हटाने को लेकर वर्ष 2007 में हाईकोर्ट ने पहला आदेश पारित किया था।” — रविशंकर जोशी, याचिकाकर्ता
हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ कई विशेष अनुमति याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुईं। सुप्रीम कोर्ट ने तब अतिक्रमणकारियों और राज्य सरकार को 13 फरवरी 2017 तक अपने व्यक्तिगत निवेदन हाईकोर्ट में दाखिल करने का निर्देश दिया, और हाईकोर्ट को तीन माह में इनका निस्तारण करने को कहा।
अदालती आदेशों के बावजूद कार्रवाई में देरी
6 मार्च 2017 को हाईकोर्ट ने रेलवे को ‘ Public Premises (Eviction of Unauthorised Occupants) Act, 1971 के तहत कार्रवाई करने का निर्देश दिया था, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। इस पर याचिकाकर्ता रविशंकर जोशी ने अवमानना याचिका दायर की, लेकिन स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया।
लगातार कार्रवाई न होने पर जोशी ने 21 मार्च 2022 को फिर से हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की। 18 मई 2022 को कोर्ट ने सभी प्रभावित व्यक्तियों को अपने दस्तावेज़ प्रस्तुत करने के लिए कहा, लेकिन अधिकांश अतिक्रमणकारी अपनी भूमि पर वैध अधिकार साबित करने में असफल रहे। अंततः 20 दिसंबर 2022 को हाईकोर्ट ने रेलवे को एक सप्ताह का नोटिस जारी कर अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए। यह मामला बाद में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां इसकी महत्वपूर्ण सुनवाई 10 दिसंबर को निर्धारित है।
पुलिस-प्रशासन की कड़ी निगरानी
सुप्रीम कोर्ट के संभावित फैसले से पहले, हल्द्वानी पुलिस प्रशासन पूरी तरह सतर्क दिखा। चप्पे-चप्पे पर सख्त निगरानी और संदिग्ध तत्वों के प्रति ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति अपनाई गई है। एसएसपी डॉ. मंजूनाथ टीसी ने सुरक्षा तैयारियों का बारीकी से जायजा लिया और संबंधित अधिकारियों को आवश्यक दिशा-निर्देश दिए।
“सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का पालन कराना और कानून व्यवस्था बनाए रखना प्राथमिकता है। पूरा क्षेत्र पुलिस छावनी में तब्दील रहेगा। सरकारी कार्य में बाधा पहुंचाने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।” — मंजूनाथ टीसी, एसएसपी, नैनीताल
एसएसपी ने कहा कानून व्यवस्था बनाए रखना उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए क्षेत्र को पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया, और अत्याधुनिक असलहों से लैस पैरामिलिट्री और रेलवे पुलिस फोर्स भी तैनात रही।
बनभूलपुरा के सभी मार्ग ‘जीरो जोन’
पुलिस ने आज सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के चलते हल्द्वानी शहर और बनभूलपुरा में रूट डायवर्जन प्लान भी लागू कर दिया था। इसके तहत कई क्षेत्रों को ‘जीरो जोन’ घोषित किया गया था, जहां सभी प्रकार के वाहनों की आवाजाही प्रतिबंधित थी। यह डायवर्जन प्लान मंगलवार सुबह आठ बजे से रात्रि नौ बजे तक प्रभावी रखने की बात कही गई। इसके अतिरिक्त, सुबह आठ बजे से रात दस बजे तक नैनीताल जनपद में सभी प्रकार के भारी मालवाहक वाहनों के साथ ही अति आवश्यक सेवा से संबंधित वाहनों का आवागमन भी बंद रहा। इन सभी वाहनों को जनपद की सीमा पर ही रोक दिया गया। इसी तरह का प्लान 10 दिसम्बर को भी लागू किए जाने की संभावना है।





