उत्तराखंड सरकार द्वारा मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम को खत्म करने की तैयारी के बाद राज्य की राजनीति में हलचल मच गई है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इस फैसले का कड़ा विरोध करते हुए सरकार को सोच बदलने की नसीहत दी है। उन्होंने इसे सिर्फ एक समुदाय के खिलाफ कदम बताते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी है।
“नाम बदलने से नहीं चलेगी सरकार” – हरीश रावत का बयान
रविवार को पत्रकारों से बातचीत करते हुए हरीश रावत ने कहा, “मुझे नहीं पता कि भाजपा कब तक सिर्फ नाम बदलकर अपनी सरकार चलाएगी। उन्हें अपनी सोच में बदलाव लाना होगा।” उन्होंने कहा कि ‘मदरसा’ शब्द उर्दू भाषा से जुड़ा है, और उर्दू हमारी गंगा-जमुनी तहजीब की पहचान है।
रावत ने कहा कि मदरसों का एक ऐतिहासिक महत्व है, और वे देश की आजादी की लड़ाई में भी जुड़े रहे हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि जब एक समुदाय राज्य के नियमों के तहत शिक्षा को आगे बढ़ाना चाहता है, तो सरकार उसे ऐसा करने से क्यों रोक रही है?
सरकार पर मदरसों को खत्म करने का आरोप
हरीश रावत ने कहा कि सरकार का इरादा साफ है – वह मदरसों को धीरे-धीरे खत्म करना चाहती है। लेकिन उन्होंने विश्वास जताया कि सरकार इसमें सफल नहीं हो पाएगी। उन्होंने इसे लोकतंत्र के खिलाफ कदम बताया और कहा कि आज देश में लोकतंत्र की हत्या हो रही है।
रावत ने कहा कि संविधान और पंचायती राज व्यवस्था के लिए हमारे पूर्वजों ने बलिदान दिए हैं, लेकिन आज उनकी भावना को कुचला जा रहा है। उन्होंने कहा कि पंचायती राज जैसी व्यवस्थाओं को खत्म करने की कोशिश हो रही है, जो बहुत चिंताजनक है।
सरकार ला रही नया कानून अल्पसंख्यक संस्थानों के लिए
उत्तराखंड सरकार अब एक नया कानून लाने जा रही है, जिसका नाम है ‘उत्तराखंड अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान अधिनियम 2025’। इस अधिनियम का उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदायों द्वारा संचालित शैक्षिक संस्थानों को मान्यता देने के लिए एक पारदर्शी और सुव्यवस्थित प्रक्रिया तैयार करना है।
अब तक यह दर्जा सिर्फ मुस्लिम समुदाय के लिए लागू था, लेकिन नए कानून के तहत सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध और पारसी समुदायों के शैक्षिक संस्थानों को भी यह सुविधा मिलेगी। यह भारत का पहला ऐसा राज्य कानून होगा जो सभी अल्पसंख्यकों के लिए समान रूप से शैक्षिक अधिकार सुनिश्चित करेगा।
क्या है आगे की राह?
जहां एक ओर सरकार इसे शिक्षा के क्षेत्र में समानता की दिशा में बड़ा कदम बता रही है, वहीं विपक्ष इसे मुस्लिम समुदाय को टारगेट करने वाला फैसला मान रहा है। अब देखने वाली बात यह होगी कि विधानसभा सत्र में यह कानून पास होता है या नहीं, और इसका राजनीतिक असर राज्य में कैसा पड़ता है।





