उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले स्थित प्रसिद्ध तृतीय केदार श्री तुंगनाथ मंदिर के कपाट बृहस्पतिवार को विधि-विधान और मंत्रोच्चार के साथ सुबह 11:30 बजे शुभ मुहूर्त में शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। कपाट बंद होने के बाद भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह डोली प्रथम पड़ाव चोपता के लिए रवाना हुई। यह डोली विभिन्न पड़ावों से होकर 8 नवंबर को मक्कूमठ स्थित मर्कटेश्वर मंदिर पहुंचेगी, जहां शीतकाल में भगवान तुंगनाथ की पूजा-अर्चना और दर्शन होंगे।
श्री तुंगनाथ मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद
कपाट बंदी के अवसर पर तुंगनाथ मंदिर को फूलों से भव्य रूप से सजाया गया था। सुबह से ही सैकड़ों श्रद्धालु कपाट बंद होने के इस शुभ अवसर के साक्षी बनने पहुंचे थे। सुबह भगवान तुंगनाथ के दर्शन के लिए मंदिर खोला गया और नित्य पूजा-अर्चना के बाद साढ़े दस बजे से कपाट बंद करने की प्रक्रिया शुरू की गई। यज्ञ, हवन और भोग के बाद भगवान तुंगनाथ के स्वयंभू शिवलिंग को समाधि रूप देकर 11:30 बजे मंदिर के कपाट बंद किए गए। इसके बाद चल विग्रह डोली ने मंदिर परिसर की परिक्रमा की और भक्तों को आशीर्वाद देते हुए ढोल-नगाड़ों की गूंज के बीच चोपता के लिए प्रस्थान किया।
डेढ़ लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने किए दर्शन
इस अवसर पर श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति (बीकेटीसी) के अध्यक्ष हेमंत द्विवेदी ने बताया कि इस यात्रा वर्ष में डेढ़ लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने भगवान तुंगनाथ के दर्शन कर पुण्य लाभ प्राप्त किया। उन्होंने कहा कि अब शीतकालीन पूजा श्री मर्कटेश्वर मंदिर मक्कूमठ में की जाएगी। समिति ने बताया कि शीतकालीन यात्रा को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष तैयारियां की जाएंगी ताकि श्रद्धालु भगवान के दर्शन पूरे वर्ष कर सकें।
बीकेटीसी मीडिया प्रभारी डॉ. हरीश गौड़ ने जानकारी दी कि डोली का पहला पड़ाव चोपता होगा, जहां यह एक दिन प्रवास करेगी। इसके बाद 7 नवंबर को चल विग्रह डोली भनकुन में ठहरेगी और 8 नवंबर को अपने शीतकालीन गद्दी स्थल मक्कूमठ पहुंचेगी। इस अवसर पर भक्तों ने “बोल बम-बम भोले” और “जय बाबा तुंगनाथ” के जयघोष से वातावरण को भक्तिमय बना दिया।
तुंगनाथ मंदिर समुद्रतल से लगभग 12,070 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और पंचकेदारों में तीसरे स्थान पर आता है। यह दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर माना जाता है। हर वर्ष मई से नवंबर तक यहां देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। अब शीतकाल के दौरान सभी धार्मिक अनुष्ठान मक्कूमठ में संपन्न होंगे।





