आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक…पढ़िये वो शेर जिनका एक मिसरा मशहूर हुआ दूसरा खो गया

भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। ‘वही होता है जो मंज़ूरे खुदा होता है’ ‘लम्हों ने खता की थी सदियों ने सज़ा पाई’…ऐसे ही शेरों के कई मिसरे होंगे जिनका इस्तेमाल आपने भी कभी न कभी किया ही होगा। लेकिन क्या आपको कभी खयाल आया कि इसके पहले या बाद की पंक्ति क्या थी।

ग़ज़ल की हर पंक्ति को मिसरा कहा जाता। इसी तरह दो मिसरों को मिलाकर एक शेर बनता है। ग़ज़ल के पहले शेर को मतला कहा जाता है और आख़िरी शेर को मक़्ता। इस तरह कई ग़ज़लें पूरी की पूरी मशहूर हो गई तो किसी का कोई एक दो या कुछ शेर लोगों की ज़बान पर चढ़ गए। यूं ही कई दफे ये भी हुआ कि शेर का एक मिसरा ही मशहूर हो गया और दूसरा कहीं खो सा गया। शेरो-शायरी की इस महफिल में आज हम आपके लिए ऐसे ही कुछ शेर लेकर लाए हैं जिनके मिसरे तो बहुत मशहूर हुए लेकिन हम पूरे शेर से नावाकिफ़ रह गए।


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।