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"‘अगर मेरा मुंह देखना है तो...’, धर्मेंद्र को परिवार की बेटी ने दी ऐसी कसम कि 1973 की सुपरहिट फिल्म छोड़नी पड़ी, अमिताभ बच्चन की किस्मत चमक गई।"

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साल 1973 की ब्लॉकबस्टर फिल्म 'जंजीर' पहले धर्मेंद्र को ऑफर की गई थी, लेकिन उन्होंने पारिवारिक रिश्ते की खातिर इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।

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एक करीबी कज़िन ने धर्मेंद्र से भावुक होकर कहा – "अगर आपने यह फिल्म की, तो मेरा मरा मुंह देखोगे…", इस कसम ने धर्मेंद्र को फिल्म छोड़ने पर मजबूर कर दिया।

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बेटे बॉबी देओल ने 'सुनो इंडिया' को बताया कि उनके पिता ने परिवार के सम्मान को करियर से ऊपर रखा, जिससे हिंदी सिनेमा की दिशा बदल गई।

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धर्मेंद्र के इनकार के बाद, डायरेक्टर प्रकाश मेहरा ने अमिताभ बच्चन को लीड रोल में लिया, जिससे उनका डूबता करियर नई ऊंचाइयों पर पहुंच गया।

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बॉबी ने बताया कि धर्मेंद्र ने अपने बहनोई की मदद के लिए न सिर्फ फिल्म 'सत्यकाम' की, बल्कि आर्थिक रूप से भी 25 लाख रुपये की मदद की थी।

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धर्मेंद्र ने हमेशा निर्णय दिल से लिए – करियर की बजाय रिश्तों और इंसानियत को प्राइऑरटी दी।

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जंजीर’ की रिलीज के बाद अमिताभ बच्चन को ‘एंग्री यंग मैन’ के रूप में पहचाना जाने लगा, और यह उनके स्टारडम की शुरुआत थी।

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धर्मेंद्र के इनकार से बनी ‘जंजीर’ लगभग 1 करोड़ में बनी और 6 करोड़ की कमाई की, जिसने हिंदी सिनेमा की दशा और दिशा बदल दी।

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