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Mahabharat : महाभारत के बाद धृतराष्ट्र और गांधारी ने अपना जीवन कैसे व्यतीत किया, और किस उम्र में उन्होंने इस संसार को त्याग दिया?

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युद्ध के बाद धृतराष्ट्र और गांधारी ने अपने सभी 100 पुत्रों को खो दिया, जिसमें उनका प्रिय पुत्र दुर्योधन भी शामिल था। इस गहरे दुख के बीच वे अपने नए जीवन में उपेक्षित महसूस करने लगे।

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युधिष्ठिर ने उन्हें महल में सम्मानपूर्वक रहने की अनुमति दी, लेकिन वे हमेशा अपने पुत्रों के वियोग और अपमान के कारण दुखी रहे। भीम के ताने उन्हें बार-बार कष्ट पहुंचाते थे।

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महल में रहने के बावजूद धृतराष्ट्र और गांधारी अपने पुत्रों की मृत्यु के शोक से उबर नहीं पाए। उन्हें हमेशा यह महसूस होता था कि जिन पांडवों के साथ वे रह रहे हैं, वे ही उनके पुत्रों की मृत्यु के लिए जिम्मेदार हैं।

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युद्ध के बाद धृतराष्ट्र और गांधारी लगभग 15 वर्षों तक हस्तिनापुर में रहे। इस दौरान युधिष्ठिर ने उनकी देखभाल की, लेकिन धृतराष्ट्र को भीम के तानों और निन्दा चुभते रहे।

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15 वर्षों के बाद विदुर की सलाह पर धृतराष्ट्र ने संन्यास लेने का निर्णय लिया। गांधारी और कुंती भी उनके साथ वन में जाने के लिए तैयार हो गईं।

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वन में धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती आश्रम में रहने लगे। उन्होंने ध्यान, तपस्या और आत्मचिंतन में अपना जीवन व्यतीत किया। युधिष्ठिर और पांडव समय-समय पर उनसे मिलने जाते थे।

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एक दिन जंगल में भीषण आग लग गई, जिससे धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती उसकी चपेट में आ गए। उन्होंने इसे अपनी नियति मानकर शांतिपूर्वक मृत्यु को स्वीकार कर लिया।

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महाभारत में उनकी उम्र का स्पष्ट उल्लेख नहीं है, लेकिन विद्वानों के अनुसार धृतराष्ट्र की मृत्यु लगभग 85-95 वर्ष की उम्र में हुई, जबकि गांधारी की आयु भी 80-90 वर्ष के बीच मानी जाती है।

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