महाभारत: कर्ण और कुंती के बेचैन करने वाले सपने – जानिए क्या था इसके पीछे का राज
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कर्ण को अक्सर सपने में एक राजसी महिला दिखती थी, जो घूंघट में होती और उसके आंसू कर्ण के चेहरे पर गिरते थे। वह महिला अपना चेहरा नहीं दिखाती थी, और यह सपना कर्ण को गहराई तक विचलित कर देता था।
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कुंती को भी ऐसा ही सपना आता था, जिसमें वह कर्ण से मिलती थीं। वह कर्ण को बताती थीं कि वह उनकी मां हैं, लेकिन सामाजिक डर की वजह से उन्हें छोड़ना पड़ा। इस बात को कहने की चाह उनके सपनों में जाहिर होती थी।
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कर्ण ने अपनी असली पहचान के लिए जीवनभर संघर्ष किया। यह बात उन्हें विचलित करती थी कि वह सूत अधिरथ के बेटे क्यों कहे जाते हैं। उनकी यह बेचैनी तब खत्म हुई, जब उन्हें कृष्ण ने उनकी असली मां के बारे में बताया।
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युद्ध से पहले कृष्ण ने कर्ण को असलियत बताई कि वह कुंती के बेटे और पांडवों के भाई हैं। यह सुनकर कर्ण स्तब्ध रह गए। हालांकि, उन्होंने दुर्योधन का साथ देने का फैसला नहीं बदला।
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महाभारत के युद्ध से पहले कुंती ने गंगा किनारे कर्ण से मुलाकात की। यह पहली बार था जब कुंती ने कर्ण को उसकी असली पहचान बताई। यह सच जानने के बाद कर्ण भावुक होकर रो पड़े लेकिन फिर भी उन्होंने पांडवों के खिलाफ लड़ने का निर्णय लिया।
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कर्ण ने कुंती से कहा कि वह उन्हें हमेशा से सपने में देखते आए हैं। उस महिला की उदास आंखें और आवाज उन्हें बेचैन कर देती थीं। उन्होंने यह भी कहा कि सपने में वह महिला हमेशा अन्याय का जिक्र करती थीं।
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युद्ध के बाद तर्पण के समय कुंती ने युधिष्ठिर को कर्ण का सच बताया कि वह उनका बड़ा भाई था। यह सुनकर युधिष्ठिर बेहद नाराज हुए और कुंती को श्राप दिया कि अब महिलाएं अपने दिल के राज छिपा नहीं पाएंगी।
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कर्ण और कुंती के सपने उनके बीच के अनकहे रिश्ते और सामाजिक दबाव का प्रतीक थे। कर्ण का दर्द और कुंती की ममता इन सपनों में जाहिर होती थी, लेकिन सामाजिक दबाव ने उनके रिश्ते को खुलकर सामने आने से रोका।
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