मुंबई का वड़ापाव: मजदूरों का सस्ता नाश्ता कैसे बना हर मुंबईकर की पसंद? जानिए इसकी रोचक अनकही दास्तान!
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वड़ापाव की शुरुआत 1960-70 के दशक में अशोक वैद्य ने दादर स्टेशन के पास एक स्टॉल से की थी, जो आज मुंबई की पहचान बन चुका है।
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वड़ापाव का जन्म फाइनैन्शल प्रॉब्लेम के कारण हुआ। मिल वर्कर्स के लिए यह एक सस्ता और पेट भरने वाला विकल्प था, जिसे 1978 में मात्र 25 पैसे में बेचा जाता था।
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वड़ापाव अब केवल मुंबई का स्ट्रीट फूड नहीं रहा, बल्कि गुजरात से लेकर दिल्ली तक इसकी लोकप्रियता बढ़ चुकी है।
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अशोक वैद्य ने बची हुई आलू की सब्जी को बेसन में लपेटकर तला और इसे पाव के साथ परोस दिया, जिससे वड़ापाव का जन्म हुआ।
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मुंबई में दो जगहें—अशोक वड़ापाव और आराम वड़ापाव—इतनी लोकप्रिय हैं कि यहां सुबह से शाम तक लोगों की लाइन लगी रहती है।
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1939 में श्रीरंग तांबे ने एक बंद ब्रिटिश बीयर बार में दूध से बने प्रोडक्टस बेचना शुरू किया, जो बाद में महाराष्ट्रीयन नाश्ते और सफेद वड़ा के लिए मशहूर हुआ।
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मुंबई में आराम वड़ापाव इकलौती दुकान है जहां हल्दी के बिना वड़ा बनाया जाता है, जो इसे खास बनाता है।
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बच्चों से लेकर बड़ों तक, हर कोई वड़ापाव पसंद करता है क्योंकि यह चलते-फिरते खाने के लिए सबसे आसान और स्वादिष्ट विकल्प है।
अगर आप उत्तराखंड जाएं, तो पहाड़ों की यह अनोखी मिठाई जरूर चखें, जो पत्तों में लपेटकर परोसी जाती है और अपने अद्भुत स्वाद से दिल जीत लेती है।