"न नरगिस, न सुरैया, न ही वैजयंती माला — अंडरवर्ल्ड को तो बस मधुबाला की हमशक्ल का ही जादू था सिर चढ़कर बोलता, 1971 में शर्मिला टैगोर को भी दे दी थी कड़ी टक्कर!"
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हुस्न की मल्लिका सोना, जो हू-ब-हू मधुबाला जैसी दिखती थीं, ने 1970 के दशक में अपनी अदाओं और सौंदर्य से हिंदी सिनेमा में तहलका मचा दिया, जिससे अंडरवर्ल्ड डॉन हाजी मस्तान तक इम्प्रेस हो गए।
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न नरगिस, न सुरैया और न वैजयंती माला, बल्कि सोना ही थीं जिनकी सादगी, मासूम मुस्कान और बड़ी-बड़ी आंखों ने सभी को अपना दीवाना बना लिया।
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हाजी मस्तान मिर्जा मधुबाला के दीवाने थे, लेकिन जब उन्हें मधुबाला जैसी शक्ल वाली सोना मिलीं, तो उन्होंने अपने अधूरे प्यार को पूरा मानते हुए सोना से निकाह कर लिया।
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फिल्म 'बदनाम फरिश्ते' (1971) में राजेश खन्ना के साथ काम कर चुकीं सोना ने अपनी सुंदरता और अभिनय से शर्मिला टैगोर को भी जबरदस्त टक्कर दी थी।
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सोना का असली नाम शाहजहां बेगम था, और मधुबाला जैसी शक्ल के कारण उन्हें फिल्मों में पहचान और लोकप्रियता मिली।
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सोना ने कई फिल्मों में काम किया, जिनमें ‘आदमखोर’, ‘बीवी किराए की’, ‘कुच्छे धागे’, ‘बिखरे मोती’, ‘कसम दुर्गा की’ और ‘कैसे कैसे लोग’ शामिल हैं।
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सबसे अहम किरदार उन्होंने सोहराब मोदी की फिल्म ‘मीना कुमारी की अमर कहानी’ (1981) में निभाया, जिसमें उन्होंने खुद मधुबाला की भूमिका अदा की।
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हाजी मस्तान की मौत के बाद, सोना को जीवन में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा और उनका जीवन संघर्षपूर्ण हो गया।
“आइकॉनिक हीरो का दिल पहले एक बच्चे की मां पर आया, फिर एयरहोस्टेस संग आशिकी में डूबकर बर्बाद कर बैठा सब कुछ — न पत्नी मिली, न प्रेमिका साथ रही।”