"बनारस का वह रहस्यमय साधु, जिसने मरी हुई चिड़िया में फूँकी नई जान, सूर्य की किरणों से ऊर्जा लेकर करता था अद्वितीय चमत्कार।"
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बनारस के महान योगी स्वामी विशुद्धानंद परमहंसदेव सूर्य की किरणों से चमत्कार करने में सिद्धहस्त थे। उनका मानना था कि सूर्य में जीवन शक्ति है और इससे असंभव को संभव बनाया जा सकता है।
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उन्होंने एक मृत गौरेया को सूर्य की किरणों और मंत्रों की सहायता से दोबारा जीवित कर दिया, जिसे ब्रिटिश लेखक पाल ब्रंटन ने अपनी आंखों से देखा और अपनी पुस्तक में इसका उल्लेख भी किया।
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ब्रंटन 1920 के दशक में भारत आए और कई योगियों से मिले। उन्होंने भारतीय योगियों की शक्तियों पर आधारित प्रसिद्ध किताब "A Search in Secret India" लिखी।
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ब्रंटन और स्वामी विशुद्धानंद की बातचीत में अनुवादक के रूप में गोपीनाथ कविराज साथ थे, जो बाद में संस्कृत कॉलेज के प्राचार्य और पद्मविभूषण प्राप्त विद्वान बने।
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स्वामी जी ने सूर्य की किरणों और आतशी शीशे की मदद से रेशमी रूमाल में अलग-अलग फूलों की खुशबू उत्पन्न की – जैसे बेला, गुलाब, बनफशा और एक दुर्लभ तिब्बती पुष्प की महक।
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स्वामी विशुद्धानंद ने विज्ञान और योग को एक साथ साधा। सूर्य की किरणों से वह धातु, रत्न और अन्य वस्तुएं भी बना लेते थे।
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उन्होंने ऐसी सिद्धियां प्राप्त की थीं जिससे नेचर, टाइम और जगह भी उनके कंट्रोल में थे। उनका जीवन पूरी तरह अलौकिक और आध्यात्मिक था।
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उन्होंने काशी के मलदहिया एरिया में 'विशुद्धानंद कानन आश्रम' की स्थापना की, जहां आज भी उनके नवमुण्डी सिद्धासन और संगमरमर की प्रतिमा मौजूद है, जो उनकी स्मृति को जीवंत रखते हैं।
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