Weird Rituals : नई नवेली दुल्हन अपने पैर से थाली सरकाती है, जिसे दूल्हा माथे से लगाकर स्वीकार करता है।
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थारू जनजाति में नई दुल्हन जब पहली बार ससुराल में खाना बनाती है, तो थाली को हाथ से नहीं, बल्कि पैर से खिसकाकर पति को देती है। दूल्हा थाली को माथे से लगाकर इस रस्म को स्वीकार करता है।
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इस अनोखी रस्म को ‘अपना-पराया’ कहा जाता है। इसका अर्थ है कि दुल्हन अब ससुराल की अपनी हो गई है, पर अपने मायके से उसका रिश्ता अभी भी बना हुआ है।
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थारू समाज मातृसत्तात्मक है, जिसमें महिलाओं को पुरुषों से ऊंचा दर्जा दिया जाता है। इसी कारण कई घरों में पुरुषों का रसोई में जाना वर्जित होता है।
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कुछ मान्यताओं के अनुसार थारू महिलाएं राजपूत मूल की थीं जिन्हें अपने से नीचे सामाजिक स्तर वाले पुरुषों से विवाह करना पड़ा। पैर से थाली खिसकाना उनके आत्मसम्मान की अभिव्यक्ति माना जाता है।
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यह रस्म सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि पति-पत्नी के सम्मान और रिश्ते की गहराई को दर्शाने वाली एक सांस्कृतिक पहचान है। यह दिखाता है कि पुरुष अपनी पत्नी की मेहनत को सम्मान देता है।
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थारू विवाह में दुल्हा कटार और पगड़ी धारण करता है, जंगल से साखू की लकड़ी लाता है और उसी लकड़ी से मक्का भूना जाता है। सगाई को ‘दिखनौरी’, और शादी की तिथि तय करने को ‘बात कट्टी’ कहते हैं।
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इस जनजाति में वधूमूल्य (दुल्हन के बदले पैसे) देने और दुल्हन के अपहरण द्वारा विवाह जैसी परंपराएं थीं, जो अब धीरे-धीरे समाप्त हो रही हैं। विधवा और देवर का विवाह समाज में मान्य है।
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थारू जनजाति मुख्यतः उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और नेपाल में पाई जाती है। इनकी परंपराएं हिंदू धर्म से प्रभावित हैं लेकिन इनकी विशिष्ट रीति-रिवाज इन्हें अन्य समुदायों से अलग पहचान देते हैं।
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