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आइसलैंड में बार बार ज्वालामुखी क्यों फट रहे हैं आखिर क्या है इसकी वजह

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आइसलैंड मध्य-अटलांटिक रिज पर स्थित है, जहाँ उत्तरी अमेरिकी और यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेटें अलग हो रही हैं। इन प्लेटों के अलग होने से धरती के भीतर से मैग्मा ऊपर आता है और लगातार ज्वालामुखी विस्फोट होते हैं।

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2021 से अब तक आइसलैंड में 12 से ज्यादा बार ज्वालामुखी फट चुके हैं। ये "फिशर इरप्शन" कहलाते हैं, जिनमें लावा लंबी दरारों से बहता है, ना कि किसी एक गड्ढे से। हाल ही में रेक्जेनेस Peninsula पर एक नई दरार सुबह 3:54 बजे खुली।

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मिड-अटलांटिक रिज एक समुद्र के नीचे की पर्वत सीरीज है, जो आइसलैंड को सीधे अफेक्ट करती है। इस रिज के ऊपर स्थित होने से यहां बार-बार ज्वालामुखीय ऐक्टिविटी  होती हैं, जो नई क्रस्टल परतों का निर्माण करती हैं।

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आइसलैंड केवल रिज पर ही नहीं बल्कि एक स्थायी हॉटस्पॉट के ऊपर भी स्थित है। इस हॉटस्पॉट से उठता गर्म मैग्मा टेक्टोनिक हलचलों के साथ मिलकर बहुत और बार-बार ज्वालामुखी विस्फोटों को जन्म देता है।

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जब ज्वालामुखी बर्फ से ढके एरिया  में फटते हैं, तो मैग्मा और बर्फ की क्रिया से विस्फोट और भी खतरनाक हो जाते हैं। इससे राख, लावा और पानी का भारी बहाव उत्पन्न होता है जिसे ‘जोकुलह्लाउप्स’ कहा जाता है।

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आइसलैंड में 9वीं शताब्दी से ज्वालामुखी फट रहे हैं। 1783 का लाकी और 2010 का एजफ्याल्लाजोकुल विस्फोट इसके उदाहरण हैं, जिन्होंने वैश्विक मौसम और विमानन व्यवस्था पर भी असर डाला था। रेक्जेनेस Peninsula 800 साल बाद फिर से ऐक्टिव हुआ है।

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ज्वालामुखियों के नीचे छिपी जियोथर्मल एनर्जी आइसलैंड की कुल बिजली का 25% और 90% घरों की हीटिंग प्रवाइड करती है। यह देश नैच्रल रिसोर्स के जरिए एनर्जी आत्मनिर्भरता की मिसाल बन चुका है।

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30 से ज्यादा ऐक्टिव ज्वालामुखियों वाला आइसलैंड आज "वोल्केनो टूरिज्म" का हब बन गया है। रोमांच के शौकीनों के लिए यह जगह सिसिली, इंडोनेशिया और न्यूजीलैंड जैसे देशों के समान एक फेमस ज्वालामुखीय डेस्टिनेशन बन चुकी है।

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