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गुस्से में बच्चे पर चिल्लाना क्यों हो सकता है खतरनाक? ऐसे माता-पिता को पैरेंटिंग का तरीका क्यों बदलना चाहिए?

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जब बच्चे गलती करते हैं, माता-पिता अक्सर डांटना शुरू कर देते हैं, इसे अनुशासन का हिस्सा मानते हुए। लेकिन डांटने से बच्चे का व्यवहार सुधरने के बजाय वह पैरेंट्स से दूर होने लगता है और रिश्तों में खटास पैदा हो सकती है।

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लगातार डांटने वाले पैरेंट्स के बच्चे अक्सर अपनी भावनाएं साझा नहीं करते। उन्हें डर रहता है कि अपनी बात कहने पर डांट पड़ेगी, जिससे बच्चे अकेलेपन और आंतरिक तनाव का शिकार हो जाते हैं।

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विशेषज्ञों का कहना है कि चिल्लाना बच्चों के दिमाग पर गहरा असर डालता है। यह उनके आत्मविश्वास को कमजोर करता है और उनके अंदर डर और एंग्जायटी जैसी मानसिक समस्याएं पैदा कर सकता है।

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लगातार चिल्लाने वाले बच्चे धीरे-धीरे अपने पैरेंट्स की भावनाओं को महत्व देना बंद कर देते हैं। इससे वे एग्रेसिव हो जाते हैं, गुस्से से भर जाते हैं और दूसरों को बुली करने लगते हैं।

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लंबे समय तक स्ट्रेस झेलने वाले बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास प्रभावित होता है। रिसर्च में पाया गया है कि ऐसे बच्चों को दूसरों के मुकाबले 45% अधिक दर्द और तनाव महसूस होता है।

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कड़ी पैरेंटिंग, जिसमें चिल्लाना और अपशब्द कहना शामिल है, बच्चों के दिमाग के विकास पर नेगेटिव असर डालती है। अमेरिका की एक स्टडी में पाया गया कि ऐसे बच्चों का दिमाग नेगेटिव साउंड और भाषा जल्दी सीखता है, जिससे उनका स्वाभाव अधिक नकारात्मक बन सकता है।

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बच्चों को अनुशासन सिखाने के लिए उन्हें चिल्लाने की बजाय उनकी समस्याओं को समझें। उनकी भावनाओं और परेशानी को जानने की कोशिश करें। सहानुभूति और खुलकर संवाद करने से बच्चे के साथ बेहतर संबंध बन सकते हैं।

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जब बच्चे अच्छा व्यवहार करें तो उनकी तारीफ करें। गलतियां होने पर उन्हें यह समझाएं कि उनका व्यवहार क्यों सही नहीं है। इससे बच्चे को सही और गलत का अंतर समझने में मदद मिलेगी और वे सकारात्मक तरीके से आगे बढ़ेंगे।

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